
एक गांव में एक बुढ़िया अपने बेटे के साथ रहती थी।
उसके पास एक संदूक रखा होता था वह कभी उस संदूक को हाथ लगाने नहीं देती थी ।
कोई भी पूछता इसमें क्या है अम्मा? कोई जवाब नहीं देती। उस पर हमेशा ताला लगा होता।
कई साल गुजर गए।
बेटे की शादी हो गई उसको सुंदर सा एक पोता भी मिल गया।
देखते-देखते दस साल बीत गए।
एक बार बेटा खेत पर से आया और देखा की मां की हालत ठीक नहीं है ,वह बीमार बिस्तर पर पड़ी है।
अचानक से ही जोर से आवाज आई कि “कुछ उधार चाहिए”
तब एक ग्वालन आती है,
अम्मा : “मेरे पैसे वापस करो पहले दिए थे वो। “
अम्मा किसी की सुनती नही थी, बिस्तर से बोली “अरे! जब चाहिए थे तब तो बड़ी विनम्र थी “।
हर पूर्णिमा पर अम्मा एक पूजा करती थी और पूजन कक्ष में किसी को भी आने नहीं देती थी।
बड़ी रहस्यमई अम्मा थीं।
लेकिन किसी की पूछने की हिम्मत नहीं थी कि आखिर कौन है ? क्या रहस्य है ?
संदूक में क्या है?
लेकिन रहस्य कब तक छुपता अम्मा का पूरे गांव में दबदबा था
वह सबकी परेशानियों का हल निकालती थी
लेकिन बहुत ठसक में बात करती थीं।
वैद्य को बुलाकर बेटे ने अम्मा का इलाज करवाया।
अम्मा ने अपने इलाज के पैसे दे दिए।
एक दिन पोता स्कूल से घर जल्दी आ गया तभी अचानक देखता है कि
अम्मा के कमरे से जोर से आवाज आ रही है लेकिन अम्मा के अलावा तो कोई और था ही नहीं तो फिर आवाज कहाँ से आई?
और वह चुपचाप ध्यान से सुनने लगा-
थोड़े समय में वहां से धुआं निकलने लगा, पोते से रहा नहीं गया।
उसने बाहर से आवाज लगाई -अम्मा अम्मा अम्मा
अम्मा घबरा गई यह क्या हुआ और एक कंपन सा हुआ…
थोड़ी देर में सब ठीक हुआ अम्मा कमरे से बाहर आई, पोते को गले लगा कर बोली आज जो भी तुमने सुना और देखा तुम किसी को भी नहीं बताओगे।
पोते ने कहा अम्मा मुझे अभी बताओ वह क्या था?
वह जिद करने लगा अम्मा- बताओ ना अम्मा ,अम्मा बताओ ना!
अम्मा के रहस्य का भेद खुलने का समय आ गया था। अम्मा ने कहा •••
यह बहुत पहले की बात है ;
मेरे पास एक रहस्यमई जादुई कड़ा है!
जिसके पास एक ऐसी शक्ति है, जो किसी भी निराश और परेशान व्यक्ति को मदद करने में पूर्ण रूप से सहयोग करती है।
वह कड़ा सुनहरा रत्नों से जड़ा बहुत आकृष्ट था।
पोते ने पूछा अम्मा इसका उपयोग कैसे करते हैं?
अम्मा ने कहा हर पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी छटा बिखेरता है, उसकी शीतलता में सभी के दुख दूर हो जाते हैं।
पूर्णिमा के दिन चुपचाप से मैं इस कड़े को संदूक से निकालकर प्रार्थना करती हूं
जिससे कि गांव में सब के दुख दूर हो सके।
और जब मेरी प्रार्थना पूर्ण होती है तो मंत्र के देवता स्वयं प्रकट होते हैं
जो आवाज तुम्हें सुनाई दी थी
वह उन्हीं की थी और धुआं भी उनके आने पर ,बादलों के समूह सा उठता हुआ दिखाई देता है ।
वह बहुत घना ,कमरे से बाहर भी निकलता प्रतीत होता है।
लेकिन यह कोई नहीं जानता था एक शर्त थी कि यदि कोई ऐसा होते देख लेगा तो उसे सच बताना पड़ेगा।
इतने सालों तक कोई भी ना जान पाया आज तुम्हें पता चल गया और मुझे तुम्हें बताना पड़ा।
पोता आश्चर्यचकित हो गया और उसने पूछा -अम्मा आपको कैसे पता चला?
अम्मा ने कहा जब तुम्हारे दादा जी थे तब उन्हे यह स्वप्न दर्शन में ज्ञात हुआ।
अम्मा ने बताया कि यह कड़ा सभी के कष्टों को दूर करते आ रहा है।
जब तक यह रहेगा तब तक गांव में कभी भी दुख दर्द नहीं आएगा।
यह स्वयं से ही प्रकट हुआ है इसलिए सिर्फ इतना जानती हूं कि इससे ज्यादा तुम्हें नहीं बता सकती।
अभी उसका समय नहीं आया है, जब समय आएगा तब तुम्हें जरूर बताऊंगी।
तुम यह सब कुछ भूल जाओगे, और वैसा ही हुआ।
पोता भूल भी गया।
दूसरे दिन पुनः सब कुछ वैसा ही बना रहा जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
गांव में खुशहाली बनी रही।
कोई नहीं जानता था कि अम्मा ऐसा कौन सा रहस्य जानती है जो सब के दुख दूर कर रहा है।