
—- सम्मान की भूख —-
मणिकांत बाबू सीधे सरल प्राणी थे,
घर में गाय जैसी पत्नी, जिसका घर के काम और पूजा पाठ में ही दिन पूरा हो जाता।
रिटायरमेंट के बाद वे शौकिया तौर पर कुछ लिखने लगे थे और कभी कभार पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित भी हो जाती।
वे सुबह सब्जी मंडी जाते और शाम को दोस्तों के साथ घूमते फिर नदी किनारे मंडली जमती।
आज श्यामसुंदर जी ने बताया कि उनके बेटे को किताब का विमोचन हो रहा है।
सम्मान समारोह में शामिल होने के लिए वे कल जा रहे हैं।सभी उनको बधाई देने लगे।
मणिकांत बाबू के मन में विचार चलने लगे।यह कल का छोकरा इसे देखो सम्मान मिल रहा है।
रह रह कर उनके मन में टीस उठ रही थी
कि उन्हें इस तरह का कोई सम्मान नहीं मिल रहा।
वे बुझे मन से घर पहुँचे।
बेमन से खाना खाया।
सोच रहे थे जीवन भर क्लर्क की नौकरी में खटता रहा,
रिटायरमेंट की एक विदाई पार्टी में ही उनका शाल श्रीफल से स्वागत हुआ था।
उनके मन में टीस उठ रही थी कि किसी जलसे में भी तारीफ के दो शब्द नहीं मिले।
सुबह वे देर से उठे, गुमसुम पड़े रहे।
“क्या हुआ आपकी तबियत तो ठीक है?” श्रीमती जी ने पूछा।
नहीं कुछ नहीं मन की व्यथा छुपाते हुए वे बोले।
आज शाम उनके कदम कन्नू पहलवान के घर की ओर बढ़ गए।
कन्नू बस नाम का ही पहलवान था।
कहीं किसी का कोई काम अड़ा हो तो चुटकियों में राह निकाल देता,
किसी पर मुसीबत पड़ती तो वो सबसे पहले हाजिर हो जाता।
“आइये मणि बाबू। बैठिए। बताइए कैसे आना हुआ।”
“बस सब ठीक है। श्यामसुन्दर जी के बेटे का सम्मान हो रहा है,
अभी गुप्ता जी को भी सम्मान मिला था, मुझे कोई पूछता नहीं है।”
कन्नू पहलवान बोला-
“क्यूँ परेशान होते हैं। इस बार का काव्य गौरव सम्मान आपके नाम।”
मणि जी की आँखे फैल गई।
“अच्छा!”
“बस थोड़ा खर्चा पानी करना पड़ेगा।”
मणि जी- “अच्छा।कितना खर्चा लगेगा?”
“कुल मिलाकर तीस हजार रुपये लग जाएंगे। अतिथि सत्कार, प्रशस्ति पत्र और दूसरे खर्च।”
साहित्य गौरव सम्मान, गले में फूल माला,
मुख्य अतिथि के रूप में ख्यात कवि।
मन ही मन अपने सम्मान समारोह का चित्र खींच कर वे प्रफुल्लित हो रहे थे।
“सुनो आज सुधा जीजी का फोन आया था वे काशी जा रही हैं,
मेरा भी मन है उनके साथ जाने का।
बस एक बार बाबा विश्वनाथ की नगरी देख लूँ।”
रोटी परोसते हुए वह बोली।
अगला कौर उनके गले के नीचे नहीं उतरा।
उन्होंने हाथ धो लिए।
वे बिस्तर पर करवटें बदल रहे थे,
क्या बाबा विश्वनाथ उन्हें माफ करेंगे?
दूसरे दिन वे बैंक गए , 30 हजार रुपये निकाल लाये।
शाम चार बजे कन्नू पहलवान आने वाला था
20,000 रु आज देने थे बाकी सम्मान समारोह वाले दिन।
जब उन्होंने लिखने के लिए पेन उठाया, डायरी खोली।
मन धिक्कारने लगा खुद पर
देवी सरस्वती का आशीर्वाद मानते हो और लक्ष्मी का अपमान करते हो।
उन्होंने घड़ी देखी, पौने चार बजे थे ।
अपनी पत्नी से बोले
“सुनो, चार बजे कन्नू पहलवान आने वाला है,
उससे कहना- हम लोग कल काशी जा रहे हैं।
सम्मान समारोह वाली बात वह भूल जाये।”
इससे पहले कि उनकी पत्नी कुछ और पूछती वे बाहर निकल गए ,
उनके मन में अब “सम्मान की भूख “मर चुकी थी।
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