बुजुर्गों की सीख

साहसी

“बिट्टू, थोड़ा ध्यान से, तेज गति से नहीं दौड़ना और सोसायटी के अंदर ही खेलना बाहर तो बिल्कुल नहीं निकलना।

“गौरी, बिट्टू का पूरा ध्यान रखना, खेलने में मस्त मत हो जाना।”

“आप चिंता ना करे माँ, मैं हूँ ना आप बिल्कुल परेशान मत होइए। मेरे होते बिट्टू को कुछ नही होगा।”

वाह क्या बात है, जरा सी जान और हौसला तो देखो। मिताली ने प्यार से गौरी को देखा लेकिन कहीं नजर ना लग जाये इस डर से तुरन्त बात बदल कर बोली

“चुप रहो बहुत बोलती हो।”

गौरी ने मिताली को देखा और हंसती हुई, खेलने में मगन हो गई।

दस साल की गौरी हर काम में सबसे आगे, आलराउंडर। सुबह जल्दी उठकर समय से स्कूल के लिए तैयार हो जाती है। स्कूल जाने के पहले दादा दादी के कमरें मे जाकर उनसे मिलती हैं।

पापा की लाडली, पापा का भी ध्यान रखती है। सुरेश दादाजी और करुणा दादी भी बच्चों को बहुत प्यार करते है। दोनों बच्चों को दादा – दादी ने प्यार के साथ साथ संस्कार और अनुशासन में रहना भी सिखाया है।

रोज रात को दादी, गौरी और बिट्टू को शिक्षा प्रद और साहस पूर्ण कहानियाँ सुनाती है तथा मुश्किल घड़ी में अपने आपको व दूसरों को कैसे बचाये, उसके भी तरीके बताती है।

गौरी दादा- दादी की हर बात को बहुत ध्यान से सुनती है। दादा को रोज पूजा करते हुए देखती है, दादा के साथ मंत्रोच्चारण भी करती है और दादा से मंत्रों का अर्थ भी पूछती रहती है।

सौरभ आई-टी कम्पनी में हाई पोस्ट पर कार्यरत हैं। घर में नौकर चाकर, सभी प्रकार की सुख सुविधा है।

पर मिताली हर दम एक अनजाने डर से घिरी रहती है, बच्चों को लेकर बहुत आशंकित रहती हैं। बात, बात में भयभीत हो जाती है।

बच्चों को अकेले छोड़ने में डरती है। उसे नौकरों पर तो बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।

आजकल जमाना कितना खराब है, गौरी के साथ किसी ने कुछ ना- ना सोचकर ही कांप जाती है।

हे भगवान गौरी की रक्षा करना।

मिताली जितना डरती है, गौरी उतनी ही साहसी है, वो कराटे चैंपियन है।

मिताली को एक दिन उसकी सास करुणा जी ने बड़े प्यार से समझाते हुए कहा,

“बेटी तुम्हारा डर एक तरह से ठीक है,
लेकिन अगर हम ऐसे ही डरते रहे तो कैसे चलेगा,
तुम माँ हो, बच्चों को कमजोर नहीं, साहसी बनाओ,
कोई मुसीबत आयें तो उससे कैसे निपटा जाए यह सिखाओ।”

सास बहूं की बातें चल ही रही थी की,

गौरी की प्रिंसीपल का स्कूल से फोन आ गया कि गौरी को थोड़ी चोट आई है,

चिंता की कोई बात नहीं है, मरहम-पट्टी कर दी है, मैं खुद उसे छोड़ने आ रही हूँ।

आने में थोड़ी देर हो सकती है। सुनकर मिताली होशोहवास खो बैठी।

क्या हुआ गौरी को?

मिताली की आवाज थरथराने लगी।

कुछ बदमाश लड़कों ने…

पूरी बात सुनने के पहले ही मिताली कि बीच में ही चीख निकल गई,

क्या ऽऽऽऽ

मैं अभी आई, कहती हुई बाहर की ओर भागी, पीछे पीछे दादाजी और दादी भी जल्दी से आये।

और ड्राइवर से गाड़ी निकलवाकर मिताली के साथ स्कूल के लिए चल दिये।

मिताली बोली, “देखा मम्मी जी, जिसका डर था वही हुआ, मुझे तो सब डरपोक, बेवकूफ समझते हैं, ना जाने मेरी बेटी किस हालत में होगी।”

बेटी ईश्वर पर भरोसा रखो, सब ठीक होगा। धैर्य से काम लेना होगा, सुरेश जी ने मिताली को समझाने की कोशिश की।

“पापाजी आये दिन न जाने कितनी मासूम बेटियों की जिंदगी दांव पर लग रही है,

अगर ईश्वर है तो चुप क्यों हैं? आखिर कब तक?”

मिताली रो पड़ी, दादी ने अपना दर्द छुपाते हुए मिताली को सांत्वना देते हुए गले से लगा लिया।

जल्दी ही स्कूल पहुंच गये, स्कूल ग्राउंड में पुलिस और भीड़ को देखकर उनका डर बढ़ गया।

दादा-दादी और मम्मी को देखते ही गौरी दौड़कर उनके पास आ गई।

मिताली ने गौरी को कसकर सीने से लगा लिया और शरीर पर हाथ घुमाते हुए उसका निरीक्षण करने लगी।

कुछ ही देर में गौरी की क्लास टीचर, प्रिंसीपल और अन्य लोगों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और

सभी गौरी के गुणगान करने लगे,

“कितनी बहादुर बेटी है, आपकी, कितने साहस के साथ गुंडों से लड़ी है।”

पुलिस इंस्पेक्टर ने दादा जी को नमस्कार करते हुए कहा

“हमें इन बदमाशों की बहुत दिनों से तलाश थी, आज आपकी पोती ने इतनी वीरता से उनका सामना कर पकड़वाया है, बहुत गर्व की बात है।”

हम कुछ समझे नहीं, सुरेश जी ने कहां, बात क्या है?

“आइये, हम कमरें में बैठ कर बात करते हैं” प्रिंसिपल मैडम ने कहां।

“खाने की आधे घण्टे की छुट्टी में खाने के बाद, गौरी और सोनिया वाशरूम में गई थी।

बाहर आते वक्त इन बदमाशों ने इशारे से सोनिया को बुलाया और उसे चाकलेट का लालच देकर अपने साथ ले जाने लगे,

गौरी ने सोनिया को आवाज लगाई तो वो सोनिया को उठाकर भागने लगे, यह देखकर गौरी ने दौड़ कर अपने कराटे का तरीका अपनाया और अपनी टांग उनकी टांगों में फंसाकर एक को गिरा दिया और दूसरे को अपने नाखूनों से नोचते हुए अपने दांतों से उसके हाथ में काट दिया। “

दोनों कुछ समझते उससे पहले गौरी ने अपनी जेब से हल्दी की पुड़िया निकाल कर उनकी आंखों में उठा दी और जोर जोर से चिल्लाकर सबको इकट्ठे कर लिया, भीड़ को देखकर फिर ये भागने लगे

तो गौरी ने अपनी दूसरी जेब से कंचे निकाल बड़ी फुर्ती से उनके सामने फैला दिए, कंचे पर पैर पढ़ने से दोनों गिर गये और पकड़े गए।

यह सुनकर मिताली को अपने सास-ससुर की कही बातें कानों में गूंजने लगी, डरने के बजाय बच्चों को मुश्किलों से कैसे बचना चाहिए यह सिखाना चाहिए।

मिताली ने बहुत सम्मान और गर्व से अपने सास-ससुर का परिचय देते हुए सबको बताया कि आज जो गौरी ने साहसपूर्ण काम किया उसका सारा श्रेय उसके दादा-दादी को मिलना चाहिए, क्योंकि उन्हीं की शिक्षा और आशीर्वाद से यह सम्भव हुआ है।

आज हर घर में ऐसे ही बुजुर्गों की शिक्षा और प्यार की जरूरत है।

और कहानियाँ भी पढ़िए : लघुकथा

Image by klimkin from Pixabay

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