अमृतपान

अमृतपान

शीर्षक: अमृतपान

मानसी और राज दोनों पवित्र नगरी के भ्रमण पर निकले थे। उन्हें नाव में बैठकर सामने किनारे पर जाना था।

मानसी ने देखा तपती हुई धूप में उसके पास पटिये पर एक ख़ूबसूरत सा जोड़ा बैठा है|

युवक की गोद में लगभग चार माह का शिशु है।

नाव सवारियों को लेकर निकलीं ही थीं कि वह नन्हा शिशु रोने लगा।

अनुभवहीन माता पिता घबरा गए।

युवती ने अपने पर्स में से दूध की बाॅटल निकाल कर शिशु के मुँह में लगायी|

पर शिशु के उबकाई लेते ही नवयुगल घबरा गया, दूध खराब हो गया था।

युवक ने नाविक से पूछा ‘पार उतरने में कितना समय और लगेगा?’

जवाब था ‘आधे घंटे से भी थोड़ा ज्यादा। ‘

शिशु रोये जा रहा था आखिरकार, नव दंपत्ति की परेशानी मानसी समझ गयी।

कुछ लोग प्रश्न वाचक नज़रों से ताक रहे थे।

मानसी उस युवती के पास सट कर बैठ गयी।
उसने युवती को कान में कुछ कहा और,,,,,, अपनी साड़ी के पल्लू को विस्तार दिया।

मानसी के आँचल की ओट में युवती ने शिशु की क्षुधा को शांत किया, वह मुस्करा दिया।

नाव से उतरते ही नवयुगल ने राज और मानसी को धन्यवाद दिया।

मानसी ने मुस्कुराते हुए कहा कि-

‘जींस- टाॅप पहन के कहीं बाहर जाओ तो एक चुन्नी ज़रूर साथ में रखना जिससे‌ बच्चे का अधिकार भी सुरक्षित रहे और तुम्हारी स्वतंत्रता पर सवाल भी ना उठे।’

बेटी की तरह उस युवती ने सहर्ष स्वीकार किया।

Image by Dirk (Beeki®) Schumacher from Pixabay

और कहानियाँ पढ़ें : कथांजलि

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About मंजुला दुबे 3 Articles
श्रीमती मंजुला दुबे शा शिक्षक (अंग्रेजी साहित्य) महेश्वर
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स्वधा पंडित
स्वधा पंडित
2 years ago

बहुत अच्छी लघुकथा है।पहनावा केवल परिधान नही होता वो तो एक आवरण होता है जो समय अनुसार अच्छा बुरा सब ढक लवट है।

रंजन कुमार दुबे
रंजन कुमार दुबे
2 years ago

बहुत ही सुंदर तरीके से पहनावे पर समझाईश देती हुई , लघु कथा