
शीर्षक: आंखें या दिल
८ वर्षीय किशन आज बहुत खुश है, आज वो अपनी नई आंखों से अपनी नई मां को देखने वाला है।
बस पट्टी खुलने में कुछ पल का इंतजार शेष है।
१८ महीने के लंबे अंधियारे के बाद आज फिर वही दुनिया देखने को बेताब है उसका बाल मन!
वहीं दूर खड़ी डॉक्टर मीता के लिए आज ममता की परीक्षा का दिन है।
करीब डेढ़ साल पहले अस्पताल में हुए भीषण आग हादसे में एक तरफ किशन ने आंखों के साथ साथ अपनी मां देविका को खोया था।
जहां वह आया का काम करती थी, तो दूसरी तरफ मीता ने अपनी तीन साल की बेटी को खोया।
मीता के ममतामई दिल ने किशन को अपना लिया था।हादसे के बाद से मीता ने ही किशन को संभाला है।
आज उसीकी मेहनत है की किशन की जिंदगी फिर से रंगबिरंगी होने वाली है।
रूम में सारा स्टाफ उपस्थित है,
तभी डॉक्टर आते है, किशन की आंखों से पट्टी उतरती है।
आंखों को धीरे से खोलते हुए, किशन कमरे में खड़े हर सदस्य को बड़ी ही मासूमियत के साथ मुस्कुराते हुए निहारता है।
सफेद कोट और जींस में खड़े सदस्यों के बीच उसकी नन्ही आंखे वही साड़ी, वही गोल बिंदी, वही काले घने बालों को ढूंढ रही थी।
जो न दिखने पर उसका बाल मन उदास हो उठा।
तभी डॉक्टर ने उसे बधाई देते हुए हाथ मिलाया।
असमंजस में पड़े, भयभीत मन से किशन हाथ मिला कर सारे स्टाफ का अभिवादन करते हुए आगे बढ़ रहा था।
जैसे जैसे किशन आगे बढ़ता,उसके कदम वैसे वैसे भारी होते जा रहे थे।
एक बार फिर मां को खोने का डर उसके लिए असहनीय था।निराशा से भरा हुआ किशन अंत मे मीता के पास पहुंचता है।
अभिवादन कर ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, और जैसे ही मीता ने अपना हाथ मिलाया, किशन की आंखे चमक उठी, उसका रोम रोम खिल उठा और उसके दिल से आवाज आई, “मां” !!
वो इस ममत्व से पूर्ण स्पर्श को पहचान चुका था!!
मीता ने उसे गले से लगा लिया, मीता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा,आज की परीक्षा में वह पास हो चुकी थी।
हर बच्चे के लिए मां ,भगवान स्वरूप होती है।
वह उसे हर रूप में स्वीकार करता है,
चाहे वो गोरी हो या काली,
खूबसूरत हो या बदसूरत,
फटी साड़ी पहने या जींस,
जवान हो या बूढ़ी,
अच्छी हो या बुरी……
इस रिश्ते के बीच किसी भी सांसारिक चीज का अस्तित्व नहीं है।
शीतल धीरज जोशी, रायपुर, छत्तीसगढ़
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