
अम्मा …, ओ… अम्मा, अरे ! कहाँ रह गई थी तू ? मुनिया और मैं कब से रास्ता देख रहे हैं तेरा। चल ,जल्दी से खाना दे, बहुत जोर से भूख लग रही है ।
अरे बबुआ तनिक आज देर हो गई रे !
अब कल से तो घर पर ही रहना है ना ।
क्यों अम्मा ?
अरे इस मुई महामारी ने मुँह का निवाला भी छीन लिया , अब कोई भी बर्तन कपड़ा नहीं करवाना चाहता है रे !
अब राम ही जाने का होगा ।
तो अम्मा! अब मुनिया तू और मैं क्या खाएंगे ?.. अब हमारा क्या होगा …..?
अरे ! तू काहे फिकर करता है रे !
जिसने पेट दिया है पेट को भरने की चिंता भी वही करेगा, ऊपर वाला ।
लक्ष्मी ने बच्चों के मन को बहलाने के लिए कह तो दिया, किंतु चिंता में उसे भी रात भर नींद नहीं आई …..।
घरवाला तो पहले ही जा चुका है… जैसे तैसे घर चला रही थी और इस महामारी ने सब कुछ खत्म कर दिया ।
दो-तीन दिन तो निकल गए पर अब अनाज का एक दाना भी नहीं था खोली में , राशन के नाम पर सिर्फ घड़े में पानी था।
एक दिन जैसे तैसे निकाला पर दूसरे दिन तो मुनिया बेहाल हो गई थी भूख के मारे …..।
इतने में बाहर से राम नाम सत्य है… की आवाज सुनाई पड़ी उसकी खोली के आगे ही श्मशान घाट का रास्ता है।
आवाज सुनते ही गोपी फुर्ती से बाहर की ओर दौड़ पड़ा और उस अंतिम यात्रा के ऊपर जो पैसे उछाले जा रहे थे ; उनको समेट कर अपनी आई के पास ले गया और बोला
देख अम्मा, तू सच कह रही थी , कि ऊपर वाला है ना ! हमारे पेट को भरने के लिए,
उसने हमारे लिए पैसे भेज दिए ….।
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