
उस श्रेष्ठी वर्ग के शांत कॉलोनी में आज और अधिक सन्नाटा था।
प्रोफेसर साहब के बंगले के बाहर लोग ग्रुप बनाकर खड़े थे, फुसफुसाहट की आवाज में चर्चा कर रहे थे।
तभी दूर गाड़ी रुकने की आवाज आती, कोई गंभीर मुद्रा बनाए आता और अपने परिचित लोगों के ग्रुप में खड़ा हो जाता, धीर गंभीर प्रोफेसर साहब के सामने जाने की किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। ग्रुप में लोगों से सवाल…
“बॉडी” आ गई क्या??
कब तक आ जाएगी??
विश्वास नहीं होता उसने यह कदम उठाया होगा??
हमेशा विनर ही रहा है…
उसके लिए “विनर” शब्द सुन ग्रुप में खड़े कॉलोनी के ही रहवासी प्राइमरी स्कूल के रिटायर्ड हेडमास्टर साहब बिफर गए…
“लूजर” शब्द तो उसे मालूम ही नहीं था, हमेशा ‘विनर’ रहने की आदत ने ही आज अनर्थ कर दिया”
तैश में आकर हेड मास्टर साहब बोले…
“हार के बाद ही जीत है…” यह उसे कभी मालूम ही नहीं चला…
“जीवन में हार का अनुभव लेना भी उतना ही जरूरी है…”
कक्षा में हमेशा पहला आने की चाहत में पढ़ाई के अलावा उसने कुछ किया ही नहीं…
हम उम्र दोस्तों के साथ कभी खेलने गया ही नहीं…
कभी कंचे खेला ही नहीं…
कभी पतंगबाजी की ही नहीं,
अपनी पतंग कटने का दुख क्या होता है, उसे मालूम ही नहीं…
बचपन में दोस्तों के साथ कभी मारपीट की ही नहीं,
कभी पीट कर आया ही नहीं…
कभी हार को अनुभव ही नही करा…
“हार का अनुभव लेना भी उतना ही जरूरी है जितनी जीत की खुशी का…”
“जीवन में मिली पहली ही हार को वह पचा ही नहीं पाया…”
प्रोफेसर साहब का इकलौता पुत्र, बचपन से ही होशियार।
हायर सेकेंडरी बोर्ड में प्रदेश में पहला,
आयआयटी से इंजीनियर,
अमेरिका के यूनिवर्सिटी से एमएस,
25 वें वर्ष मे रॉकेट साइंस में डॉक्टरेट,
दो वर्ष नासा में रिसर्च का अनुभव।
भारत सरकार के महत्वकांक्षी मंगलयान प्रोजेक्ट में शामिल एवं 29 वें वर्ष में प्रोजेक्ट प्रमुख।
भारत का पहला मंगलयान मिशन, मिशन से जुड़े सभी वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण। भारत ने अपना पहला यान दो दिवस पुर्व मंगल ग्रह पर भेजा है, पृथ्वी की कक्षा से निकलकर यान मंगल ग्रह की ओर बढ़ रहा है। रात दो बज कर 25 मिनट 36 सेकंड पर मंगल ग्रह की सतह पर स्थापित हो जाएगा, वहां से लाल ग्रह के फोटो, जानकारियां भेजेगा, मंगल ग्रह के रहस्य से पर्दा हटेगा।
मंगल ग्रह के रहस्य जानने की संपूर्ण विश्व को जिज्ञासा है…
भारत के साथ विश्व इस उपलब्धि की खुशियां मनाएगा।
मिशन से जुड़े कोई भी वैज्ञानिक पिछले दो दिनों से घर नहीं गए हैं, रात-दिन सतत कंप्यूटर की स्क्रीन पर नजर गड़ाए है। मिशन की सफलता को वैज्ञानिकों के साथ साझा करने के लिए देश के प्रधानमंत्री स्वयं पधार चुके हैं।
आखिर वह घड़ी आ ही गई, विशाल कंप्यूटर स्क्रीन पर मंगल ग्रह की लाल पथरीली सतह नजर आ रही है…
मंगलयान धीरे-धीरे सतह की ओर आते दिखाई दे रहा है…
मंगलयान को मंगल की सतह पर स्थापित होने के लिए दस सेकंड बचे है…
वैज्ञानिकों के चेहरे पर तनाव स्पष्ट दिख रहा है…
गिनती शुरू हो चुकी है दस, नौ, आठ, सात, छह, पांच,
तभी अचानक यान ने अपनी दिशा बदल दी…
कंप्यूटर कक्ष में अरे अरे अरे का शोर…
सभी वैज्ञानिकों के चेहरे पर चिंता की लकीरे…
“और कंप्यूटर स्क्रीन डार्क ब्लेक हो गई…”
पांच सेकंड पहले सफलता हाथ से फिसल गई…
अभी-अभी प्रधानमंत्री वैज्ञानिकों को मोटिवेट कर उनका उत्साहवर्धन कर के गए हैं।
वह इस असफलता को पचा ही नहीं पाया…
पता नहीं उसे लंबा रस्सी का टुकड़ा कहां मिल गया…
हेड-मास्टर साहब ठीक कह रहे थे…
बचपन में मित्रो से हारने का अनुभव लेना भी जरूरी है…
जीवन में कभी हारना भी जरूरी है…
हार के बाद ही जीत है …
Photo by Gian Reichmuth on Unsplash
बढिया
बहुत बढ़िया