
आज होली है। दिनेश को सुबह से ही रजनी की याद आ रही है। साल भर हो गया, घर छोड़कर गये हुये।
ना ही कोई बातों का सिलसिला, न ही कोई हाल खबर।रजनी के मायके वालों ने भी मानो चुप्पी साध ली हो।
दिनेश को पिता की तो याद ही नहीँ है, सात बरस की उम्र में ही पिता का साया सिर से उठ गया था।मां भी बेटे की शादी के चार महीने बाद ही चल बसी
मन मे बहू का सुख भोगने की साध लिये।ले दे कर एक पड़ोस की राधा चाची ही थी सुख दुख में साथ देने के लिये।
कई बार राधा चाची ने समझाया कि बेटा,तू ही ससुराल जा कर रजनी को समझा बुझा कर मना ला। लेकिन हर बार उसका अहम आड़े आ जाता कि ऐसा मेरा क्या कसूर था कि रजनी ने बतंगड़ बना कर बिना कहे घर छोड़ा।
मायके वालों की नजरों में गिरा दिया सो अलग, यही सब कुछ सोचते हुये घर से अनमने मन से बाहर निकल गया।
छुट्टी का दिन था,गांव के बाहर तालाब किनारे यूं ही बेमतलब जाकर बैठ गया। सोचते सोचते पिछली होली की याद हो आई और यादों में खो गया—-
शादी को सात महीने हो गये थे। रजनी ने अच्छे से घर सम्हाल लिया था।
रजनी ने नाश्ता बनाया दोनो ने साथ नाश्ता किया, और बेसन के लड्डू बनाने की तैयारी में लग गई। इधर दोस्तो का बुलावा भी आ चुका था होली खेलने के लिये।
बचपन के दोस्त थे हर साल साथ मिलकर होली खेली, मना भी नहीं कर सकता।बाहर निकला तो रजनी ने कहा कि जल्दी आ जाना।आज त्योहार का दिन है पहले जम कर होली खेलेंगे फिर साथ में खाना खायेंगे।
उधर दोस्तो की टोली में ऐसा हुड़दंग मचा कि उसके लाख मना करने पर भी जबरन ले गये। दिनेश लाचार हो गया|
एक दोस्त के खेत में ही होली खेली गई और वहीं पर जम कर पार्टी हुई।बार बार घर जाने को तैयार भी हुआ।उसने दोस्तों को बहुत बार बताने की कोशिश भी की थी,कि रजनी मेरा इंतजार कर रही है।लेकिन होली की हुल्लड़बाजी में किसी ने नहीं सुनी।
रात के ग्यारह बजे घर पहुँचा तो देखा रजनी बिना खाना खाये सो चुकी थी।उसने बहुत मनाने की कोशिश की अपनी लाचारी बताई लेकिन रजनी को नहीं मानना था सो नहीँ मानी।
सुबह रजनी पहले ही उठ चुकी थी।टिफिन बन चुका था। वह भी उठा देर हो चुकी थी।सोचा शाम को घर आकर रजनी को मना लूँगा।
जल्दी थी, सो तैयार होकर काम पर जाने के लिये निकल गया।शाम को सिनेमा की दो टिकिट भी लेता आया।घर आया तो देखा ताला लगा था।
राधा चाची ने चाबी दी और बताया कि रजनी अपने मायके चली गई है। दुख और सन्ताप हुआ, हाथ की टिकट फाड़ कर फेंक दी।
विचारों से निकल कर बाहर आया तो देखा दिन के दो बज चुके थे।घर आया तो दरवाजे में कुंडी लगी हुई थी।
वह घबराया कि आज क्या ताला लगाना भी याद नहीँ रहा? याद आया कि ताला लगाकर चाबी राधा चाची को दी तो थी फिर?
घबराकर कुंडी खोलकर भीतर गया तो यह देखकर आश्चर्य चकित रह गया कि पूरा घर सलीके से साफ सुथरा और सजा हुआ था।
हैरान हुआ, इतने में क्या देखता है कि सामने से रजनी हाथ मे रंग का थाल लिये उसके स्वागत में मुस्कुराते हुये खड़ी थी।
दिनेश के चेहरे पर भी मुस्कराहट तैर गई।दोनो ने एक दूसरे को रंग लगाया।उस रंग नें एक दूसरे के गिले शिकवे सब मिटा दिये।
सारी शिकायतें धुल गई। राधा चाची दूर से ही देखकर आशीर्वादों की बौछार कर ही थी।
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वाह वाह बहुत ही सुंदर 🙏🙏👏👏👏👏