
शीर्षक: जिम्मेदारी
कितनी बार कहा तुमसे मेरी चीजों को व्यवस्थित रखा करो कभी भी जगह पर नही मिलती है|
भनभनाते हुए भावेश ने कमरे का दरवाजा भड़ाम से बंद कर लिया, जिसकी आवाज सुनकर विभूति सहम-सी गई|
तभी सासु माँ ने आवाज लगाई विभूऊऊऊ… चाय बना दो बेटी पड़ोस वाले निगम सा.आए हैं|
जी….
कहती हुई अपने पर्स को टेबल पर रखकर सीधे किचन की ओर गई व चाय बिस्किट ट्रे में लेकर बरामदे में आई |
“नमस्ते अंकल जी कैसे है आप?”
“आपकी तबीयत अब कैसी है? आपके घुटनों का दर्द अब कैसा है?”
“सब बढिया है बेटी!”
“तबीयत का क्या है? कभी नरम, कभी गरम चला करती है”
हँसते हुए निगम सा.ने कहा।
अरे! हा..तुम सुनाओ
आज तो तुम्हारा प्रमोशन हुआ है ना?
मेरा बेटा रमेश, बता रहा था कि
“विभूति भाभी बहुत ही कर्मठ व कार्यकुशल कर्मचारियों की गिनती में आती है ऑफिस में लगभग सभी उनसे मदद लेते है।”
हा.. अंकल कल नए पद पर नियुक्ति हो जाएगी ।
“बेटा हम सबकी तरफ से बहुत बहुत बधाई हो जी..”
“अंकल जी आप बड़ों का आशीर्वाद हमेशा मिलता रहे।
चलु अंकलजी…भावेश भी ऑफिस से थककर आए है उन्हें भी काफ़ी दे दू….”
ओर विभूति अंदर आ गई तब तक|
भावेश, भी बाहर आ गया था जो अभी अभी निगम अंकल कि सारी बातें सुन रहा था|
नमस्ते अंकलजी….. करते हुए सीधे विभूति के पीछे किचन में गया |
ओर अपने उस बर्ताव के लिए शर्मिंदा -सा होते हुए नजरें चुराने लगा |
विभूति ने अपने पति के मन मे चल रहे भावों को पढ़ते हुए बात को दूसरी ओर घुमाते हुए कहा-
“मैं सोच रही हूँ कि ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्टी ले लूँ लेकिन,
अभी नए पद पर नियुक्ति की वजह से शायद इस महीने तो नही
अगले महीने चलते हैं कही?”
भावेश के हाथ से कॉफ़ी का कप गिरते गिरते बचा |
क्योंकि भावेश जब भी कही जाने का कहता विभूति पारिवारिक व ऑफिस की जिम्मेदारियों की वजह से हमेशा ‘ना’ ही कहती आई है|
“फिर कभी चलते हैं” ही कहती आई है|
भावेश, यही तो चाहता था कि विभूति अपने लिए भी तो जिए कभी सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में कभी अपने लिए समय ही नही निकाल पाई|
और यही बात भावेश को कचोटती थी|
पत्नी की कर्तव्यपरायणता देखकर कभी कभी ऑफिस से आकर ये ‘पैंतरा’ आजमा कर कोशिश करता था |
कि कभी तो ‘ऊब’ कर कहेगी “चलो कही बाहर चलते हैं कुछ, दिनों के लिए।”
वो यह भी जानता है कि वो अगला महीना पता नही कब आएगा…..?
ओर दोनों ही एक दूसरे को देखकर मुस्करा दिए।
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