
शीर्षक: कुल्हाड़ी का शोरबा
सन्ध्या शर्मा मण्डलेश्वर
मैं भी अपने बचपन की एक कहानी सुनाती हूँ |
एक बार एक शिकारी शिकार करते हुए बहुत दूर निकल गया रात हो गई थी|
आसपास देखा एक झोपड़ी नजर आ रही थी वहाँ एक बुढ़िया रहती थी|
शिकारी ने बुढ़िया से पूछा क्या मैं यहाँ रात को सकता हूँ? बुढ़िया बोले ठीक है।
अब शिकारी के पास खाने को कुछ नहीं था|
उसे भूख लग रही थी| लेकिन बुढ़िया बड़ी कंजूस थी उसने पहले ही बोल दिया था|
सिर्फ रुक सकते हो बाकी मेरे पास खाने को कुछ नहीं है।
शिकारी ने बोला कोई बात नहीं आप मुझे एक तपेली थोड़ा सा पानी दे दीजिए|
और बुढ़िया ने दे दिए उसने लकड़ियाँ इकट्ठा कर चूल्हा जलाया तपेली में थोड़ा पानी डाला |
फिर अपने पास जो कुल्हाड़ी थी उसे धो कर पानी में डाल दिया, अब पानी उबलने लगा |
बुढ़िया पूछने लगी ‘क्या बना रहे हो’ |
शिकारी बोला “कुल्हाड़ी का शोरबा”।
अब बुढ़िया बड़ी उत्सुक थी|
कैसे बनेगा शिकारी ने कहा, ‘थोड़ी सी दाल मिल सकती है क्या?’
बुढ़िया झट से अंदर गई और थोड़ी दाल ले आई|
थोड़ा उबाल आने के बाद शिकारी बोला थोड़ा नमक मिर्ची मिल जाता तो आनंद आ जाता |
बुढ़िया ने सोचा ठीक है दे देती हूँ |
कुछ देर बाद शिकारी बोले थोड़े चावल मिल जाते तो शोरबा जोरदार बनता |
बुढ़िया ने कहा ठीक है चावल में दे देती हूँ |
इस तरह शिकारी ने बढ़िया खिचड़ी तैयार कर ली उसमें से कुल्हाड़ी निकाल ली।
अब बुढ़िया से कहा आप दो थाली ले आइए|
खिचड़ी थाली में डालकर बोले इसमें अगर थोड़ा थोड़ा घी भी हो जाता तो बहुत स्वादिष्ट लगती |
अब बुढ़िया घी भी ले आती है |
दोनों मिलकर खूब मजे से खाते हैं।
Photo by Harry Cunningham on Unsplash
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