
मैंने सुना कुछ बड़बड़ा रही थी सासू माँ,
जीव हांडी म रह्यज।
पूरा नहीं सुन पाई।
डरते हुए मैंने पूछा —क्या हुआ मम्मीजी?
आपने कुछ कहा?
हाँ!!!
लांडी को जीव हांडी म !!!
जैसे मेरा मन घर गृहस्थी में रमा रहता है वैसे ही तेरे ससुर जी पूरी तरह मोबाइल गेम में ही डूबे रहते हैं,
सच्चाई है—लांडी को जीव हांडी म रह्यज।
यह आज की सच्चाई भी है,सबका मन मोबाइल में ही रमा रहता है।
क्या इस निमाड़ी कहावत रचने वाले ने मोबाइल की कल्पना पहले ही कर ली थी?मैंने मन में ही सोचा।
अच्छा—
और हम दोनों साथ में हँस पड़ी।
क्या हम सब यही लांडी (एक सांप की प्रजाति जिसके दोनों छोर पर मुंह होते हैं)
बन कर नहीं रह गए हैं—-!!!!
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सही कहा