
‘कल नहीं , आज ही आइये ‘
कंपनी एच. आर. ने ज़ोर देकर कहा ।
मैं इंजीनियरिंग खत्म कर नौकरी की तलाश में थी ।
कुछ हफ़्तों बाद 1 कंपनी से इंटरव्यू कॉल आया ।
कॉलेज से डिग्री लेना था ।
मैंने एच. आर से 1 दिन बाद आने की बात की ।
‘नहीं , आज ही आइये’ – बोला ।
नौकरी की चाह में , मैं कंपनी का पता ढूंढते ढूंढते एक हवेली तक जा पहुँची ।
बहुत अजीब सी जगह थी ।
मैल से लिपटा कंपनी का बोर्ड , चारों ओर सन्नाटा , दूर दूर तक कोई भी नजर नहीं आ रहा था ।
सामने एक रेलवे ट्रैक , कुछ वीरान ,अटपटे घर ।
हवेली के आँगन में बिखरा सुखा कचरा , मानो जैसे कईं महीनों से सफाई नहीं हुई ।
निचली , पहली , दूसरी मंजिल पूरी तरह बंद , दरवाजों पर लगे ताले और मकड़ी के बड़े जाले ।
धूल से जमी सीढ़ियों पर मिट्टी से सनी बिखरी किताबें और मैं सावधानी से सीढ़ियाँ चढ़ती हुई ।
मेरी आहट से एक बिल्ली ने रास्ता काटा ।
मेरी साँसें बढ़ गई । छत पर पहुँची , तो एक कमरा नज़र आया ।
अंदर बैठी मैडम लैपटॉप पर काम कर रही थी ।
एच. आर फ़ोन पर बात कर रहा था । उन दोनों के अलावा वहाँ और कोई नहीं था ।
मैं झट से नीचे उतर आई ।
कंपनी को लेकर मन में संशय था।
घर आकर कंपनी ने बारे में गूगल सर्च किया । लेकिन कोई जानकारी नहीं ।
जहाँ संशय वहाँ काम नहीं कर सकती ।
यही सोचकर मैंने संकल्प किया कि आगे से कंपनी के बारे में पता कर के ही इंटरव्यू देने जाऊँगी और नई नौकरी की तलाश में लग गई ।
Photo by Ashkan Forouzani on Unsplash
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