
शैली किचन में से पूछते हुए निकली ,…..आज क्या बनाऊँ शाम के खाने में ? उसने देखा पति निलेश बालकनी में कुछ गम्भीर सोच में डूबे हुए थे । क्या बात है ,पास आकर शैली ने पूछा। कुछ नही कहकर निलेश फिर अपने कमरे में आकर लेपटॉप पर काम करने लगा।
वह देख रही थी पिछले कुछ दिनों से निलेश की चिड़चिड़ाहट ओर परेशानी को,परन्तु पूछने पर कुछ बता भी नही रहे ।उनके विवाह को अभी ढाई साल ही हुए थे । शादी के कुछ माह बाद वह अपने ससुराल इंदौर से निलेश के साथ मुंबई आ गई थी ।
निलेश एक अच्छी प्राईवेट कंपनी में इंजीनियर था। वह भी MBA थी और जॉब के लिए सर्च कर रही थी। दोनो बहुत खुशहाल जीवन जी रहे थे, निलेश अकेला ही मुंबई जैसे महानगर में अच्छे से सब मैनेज कर रहा था। समय पर घर भी माँ बाबूजी से मिलने चले जाते थे वह ओर उसकी छोटी बहन दो ही भाई बहन थे ।
लेकिन पिछले चार ,पांच महीनों से जैसे दुनियां ही बदल गई। कोरोना का कहर ओर ख़ौफ़ सारी दुनिया मे फैल गया था । निलेश वर्क फ्रॉम होम कर रहा था , ऐसे में निलेश का व्यवहार उसे चिंतित कर रहा था । क्या बात हो सकती है खाने पिने पर भी ध्यान कम हो गया था उसका ।
आज शैली ने ठान लिया था कारण जानकर रहेगी । जब बार बार पूछने पर निलेश ने बात बताई तो वह भी सन्न रह गई।
निलेश की कंपनी ने बहुत से नए इंजीनियरों को निकाल दिया था और उसके जैसे सीनियर्स ओर अच्छे परफॉर्मेंस के कारण उनको निकाला तो नही, लेकिन उनकी सैलरी आधी कर दी थी । निलेश को यही टेंशन था कि अब मुंबई जैसे महानगर में घरके आवश्यक खर्च ,फ्लैट का महंगा किराया ओर अन्य खर्चों को आधी सैलरी में कैसे मैनेज करेगा ।
शैली उस समय कुछ न बोली। खाना बनाते हुए वह तेजी से कुछ सोच रही थी । लगभग 8 बजे जब खाना टेबल पर लगाकर निलेश को खाने पर बुलाकर लाई तो उसके चेहरे पर एक सन्तोष था । बस वह मन में प्रार्थना कर रही थी कि, निलेश उसकी बात से सहमत हो जाए ।
खाना खाते हुए उसने निलेश से कहा – “एक बात कहूंगी तो आप मानोगे” । निलेश प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखने लगा। शैली आश्वस्त होकर कहने लगी क्यों न हम वापस इंदौर चले, आप अपना वर्क फ्रॉम होम वही से करना और बाबूजी ने जो अपनी ऑल इन वन जनरल स्टोर्स की शॉप कई महीनों से तबियत ओर अभी कोरोना के कारण बन्द रखी थी ,अब मैं उनकी देखरेख में वापस शुरू कर दूंगी।
ऐसे हम माँ बाबूजी के साथ भी रह लेंगे जब तक ये कठिन समय नही बीत जाता । वैसे भी माँ बाबूजी हमारे लिए चिंतित रहते हैं और बार बार फोन करके हालचाल पूछते हैं, क्योकि महाराष्ट्र में कोरोना का कहर सबसे ज्यादा हो रहा है।
निलेश बहुत ध्यान से उसकी बातें सुन रहा था ,खाना खाकर वह टेरेस पर टहलने लगा । शैली अपनी रसोई समेटने लगी । क़रीब डेढ़ घंटे बाद जब निलेश कमरे में आया तो उसकी आँखों मे एक चमक थी ।शैली की बातों में उसे एक राह दिख रही थी।
अपने घर जाने की ,पिता के बन्द पड़े व्यवसाय को शुरू करने की ,जब तक ये कोरोना का कहर दूर नही होता ।माँ बाबूजी भी खुश हो जाएंगे क्योंकि उन्हें भी बच्चों की चिंता लगातार बनी रहती हैं। छोटी बहन नीरा अपने ससुराल देवास में अपनी छोटी बिटिया के साथ खुश थी । पति का अपना कारोबार था।
वह शैली के पास आया और उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा तुमने मुझे एक “नई दिशा” दे दी कि इस कठिन वक्त से कैसे जूझना है हमें। मुस्कुरा कर बोला थैंक्यू !
माँ और बाबूजी से उन दोनों ने उसी समय बात की । वह भी उनके घर आने की बात पर खुशी से भावुक हो गए । उन दोनों ने सही निर्णय ले लिया था ।
और शैली ने चैन की सांस ली कि निलेश पर जो चिंता और हताशा के बादल मंडराने लगे थे, वह धीरे धीरे छँटने लगे ।।
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