बेटी का निर्णय

कष्ट

शीर्षक: कष्ट

‘अब आप कुछ दिन यहीं रहिए! हर बार का बहाना की अगली बार रहने के लिए आऊँगा इस बार नहीं चलेगा !’

बहुत कम बोलने वाली अंतरा ने अपने पापा को बहुत हिम्मत करके कहा ।

‘मुझे रात में कई बार उठना पड़ता है। और मैं अब इस अवस्था में तुम्हारे ससुराल में नहीं रहना चाहता !’

आज पिता ने सच्चाई बेटी को बता ही दी।

‘तो क्या हुआ पापा जैसे भाई के साथ रहते हो वैसे ही आप मेरे साथ रहो ।अब तो बेटी को भी सब अधिकार दे दिये है कानून ने ।आपको यहाँ कोई कष्ट नहीं होने देंगे !’

‘ मैं यह नहीं कह रहा की मैं वहाँ बहुत आराम में हूँ ! लेकिन मैं बेटी के घर रहूँगा तो लोग क्या कहेंगे!’

‘जब अपना जीवन कष्ट-मय हो तब लोगों के लिए नहीं स्वयं के फायदे के लिए सोचना चाहिए पापा! अब आप मेरे ही साथ रहेंगे!’

‘बेटी के निर्णय से पिता की आँखें स्नेह से नम हो गई…!’

Photo by lauren lulu taylor on Unsplash

और कहानियां पढें : शब्दबोध कथांजलि 

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About सविता उपाध्याय 2 Articles
श्रीमती सविता उपाध्याय "सरिता" शिक्षा - एम. ए. हिन्दी साहित्य विधा - लघुकथा लेखन हिन्दी व निमाड़ी गीत भजन गायिका सम्प्रति- गृहिणी ग्राम - गुलावड़, तह. महेश्वर जिला - खरगोन
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