
शीर्षक: रिश्ते
आज सुबह से ही शुभि के मन में भावनाओं का गुबार रह रहकर उमड़-घुमड़ रहा था।
मुझे समझ क्या रखा है उसने ? वह मन ही मन बुदबुदाये जा रही थी।
एक तरफ वह किचन सिंक में पड़े बर्तनों को रगड़- रगड़ कर साफ़ किए जा रही थी|
तो दूसरी तरफ अतीत की यादों में गोते लगाए जा रही थी ।
शुभ को वह दिन याद आ रहा था जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी|
चारों तरफ कितना हंसी खुशी का माहौल था ।
सब उसके रूप सौंदर्य और गुणों की प्रशंसा कर रहे थे तथा उसके पति प्रशांत के भाग्य को सराह रहे थे|
कि तुम कितने भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतनी सुशिक्षित समझदार व सर्विस वाली पत्नी मिली है|
जो तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है |
और ये शब्द सुनकर प्रशांत भी कितना खुश होता था|
पर आज विवाह के इतने सालों बाद अपनी पत्नी और बच्चों को प्यार करने वाला उसका प्रशांत कितना बदल गया है |
कभी अपनी सर्विस वाली पत्नी गर्व करने वाला उसका पति आज उसके हर काम में नुक़्स निकालता है।
वह चाहता है कि उसकी पत्नी नौकरी करे और पैसा कमा कर घर लाए मगर ऑफिस से बॉस या कलीग का फोन या मैसेज आने पर भड़क जाता है |
और उसे हमेशा शक की दृष्टि से देखता है जैसे वह चरित्र हीन हो ।
उसके फेसबुक व व्हाट्सएप चलाने पर भी निगरानी करता है।
अब स्थिति यह हो गई है कि वह उससे बेवजह की छोटी -छोटी बातों पर झगड़ा व मारपीट करने पर उतारू हो जाता है।
अब यह रोज का क्रम बन चुका है और वह बेकसूर होने पर भी स्वयं को अपराधी मानने लगती है।
उसने लहूलुहान हो चुके इस रिश्ते को बचाने की हर संभव कोशिश की मगर हर बार असफल रही पर आज तो हद ही हो गई|
जब प्रशांत ने उसके साथ साथ उसके बच्चों को भी पीटा तो उसके सब्र का बांध टूट गया|
और वह सोचने को विवश हो गई कि उसकी ऐसी क्या मजबूरी है जो वह इस मृत प्राय रिश्ते को ढो रही है क्यों और किसलिए?
अचानक बर्तन रगड़ते- रगड़ते उसकी मुट्ठियां भींच गई और उसने मन ही मन निर्णय ले लिया ।
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