
सारी रात बेनीप्रसाद जी सो नही पाए , पिछले पाँच वर्षों से उनकी रातें बेचैनी में ही कटती थी| किन्तु हर होली की पहली रात वे सारी रात सो नही पाते|
उनका इकलौता बेटा जो पाँच वर्ष पहले होली के एक दिन पहले सड़क दुर्घटना में भगवान को प्यारा हो गया था ।
रंगों से खेलने का बहुत शौक था उसे पूरे मोहल्ले में होली की धूम मचाता था । उसकी शालीनता एवं त्यौहार की उमंग से सभी प्रभावित थे ।
अभी शादी को साल भर ही तो हुआ था सुंदर , सुशील बहू ने परिवार का दिल जीत लिया था। पिछले पाँच वर्षों से उसका जीवन रंगहीन हो गया हैं।
कितनी बार बेनीप्रसाद जी ने उससे बात की-
‘बेटा ! तुम चाहो तो अपने मायके जाकर रह सकती हो अभी तुम्हारा पूरा जीवन पड़ा हैं तुम दूसरी शादी कर अपना घर पुनः बसाओ अभी तुमने देखा ही क्या हैं । ‘
उनकी बहू का एक ही जवाब रहता था –
‘ पापा मैं उस घर से बिदा हो चुकी हूँ मैंने दिल से इस घर को अपना घर माना है| आप भी तो मेरे माता पिता हो और उन्होंने आख़री साँस में मुझे यहीं कहा था मम्मी पापा को सम्भालना|
हाँ अगर मुझे यहाँ कोई तकलीफ होती तो ज़रूर मैं यहाँ से अपने मम्मी पापा के घर चली जाती , अब आप दोनों ही मेरे मम्मी पापा हो ।’
आज रात उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर एक फैसला लिया ।
रोज की तरह आज भी सुबह भगवान की आरती के लिए तीनों अपने पूजा घर में इक्कठे हुए आरती पश्चात बेनीप्रसाद जी बहू से बोले –
‘देखो बेटा पिछले पाँच सालों से हमने अपने घर में होली का त्यौहार नही बनाया , होली तो सबके तन के साथ मन रंगने का भी त्यौहार हैं| हम कब तक बेटे के जाने का दुःख मनाएंगे जाने वाला चला गया उसका हमारा साथ इतना ही था| उसके जाने के बाद हमारी जिंदगी रुक सी गई हैं अब हमें आगे बढ़ना हैं । ‘
ऐसा कह अपनी पत्नी के हाथ में आरती की थाल से कंकु लेकर उन्होंने अपनी बहू पैरों में लगाया और बोले –
‘हम इस घर में बहू के रूप लक्ष्मी लेकर आये आज तुम मेरे घर की दुर्गा हो तुम्हारे पैरों का पूजन कर हम तुम्हें अपनी बेटी बनाते हैं । ‘
बेशक तुमने इन पाँच सालों में हमें अपने बेटे की याद नही आने दी तुमने बेटे और बहू की जिम्मेदारी बखूबी निभाई हैं , अब हमें एक बेटी के माता पिता होने का हक निभाना हैं|
आज से बेरंग होली फिर रंगीली होली होंगी ।
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