
सुरभी अपने काम करते हुए पति प्रशान्त से बोली, सुनिये पड़ोस वाली भाभी कह रही थी कि बहुत पहुँचे हुए संत आये हैं।
उन्होंने अपने माता-पिता, पत्नी बच्चे सबको त्याग कर सन्यास ले लिया है, कल उन्हीं के प्रवचन हैं।
अब तो बिट्टू भी बाहर पढ़ाई कर रहा है तो क्या मैं जाऊँ प्रवचन सुनने, प्रशान्त बोला, हाँ हाँ क्यों नहीं, तुम खाना रख देना मैं खा लूँगा।
सुरभी सुबह जल्दी ही काम निपटाकर प्रवचन सुनने चली गई।
कुछ देर बाद उसका मन प्रशान्त की यादों में खो गया, वो सोचने लगी|
ये कितने अच्छे है ना कोई अहंकार ना किसी से ईर्ष्या ना कोई लालच ना कभी क्रोध करते हैं|
माता-पिता की सेवा, सबकी मदद के लिए तैयार, यहाँ तक कि मेरे माता-पिता का भी बहुत ध्यान रखते हैं|
वो मेरे गुरु हैं, मेरे भगवान हैं और मैं आज पहली बार उन्हें छोड़कर प्रवचन सुनने चली आयी ,स्वर्ग तो वहीं हैं जहाँ वो हैं।
वो तुरंत उठी और घर की ओर चल पड़ी, देखा तो प्रशान्त भोजन कर रहे थे|
उसे लगा जिसे पाने गयी थी, वो पा लिया सुरभी को असीम शांति का अनुभव हो रहा था।
आज प्रवचन सुनने जाना सफल हो गया।
जो गृहस्थाश्रम में रहकर विरक्त भाव रखता हैं वही सच्चा संत हैं।
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