सन्यास

आजकल तुम लोग बहुत टीवी देखने लगे हो, जैसे तुम्हारी परीक्षा हो चुकी हो,

चलों बंद करो टीवी और पढ़ाई करने बैठो ,

बच्चों को डांटती हुई श्रुति किचन की तरफ चल दीं।

पापा पापा कहते हुए बच्चे दौड़कर कुणाल के पास आ गये।

श्रुति भी किचन से बाहर निकल आई और मुस्कुराते हुए बोली,

“आज भी बहुत देर हो गई आपको, बच्चे बहुत देर से इंतजार कर रहे हैं ।

आफिस में काम ज्यादा चल रहा है क्या?”

“अब तुम्हें क्या हर बात बताना जरूरी है, जाओं मेरे लिए चाय बनाओ” चिढ़ते हुए कुणाल बाथरूम की ओर चला गया।

श्रुति के मन में कई प्रकार के खयाल आ रहे थे

आखिर क्या बात है जो कुणाल के स्वभाव में अचानक इतना परिवर्तन आ गया है।

ये इतनी बुक्स पढ़ते हैं ज्यादातर धार्मिक और ज्ञानवर्धक ही होती है

तो छोटी-छोटी परेशानियों से ये कभी घबराते नहीं

“मम्मी जल्दी खाना लाओ भूख लगी है” दोनों बच्चे जोर जोर से चिल्लाए,

अपने विचार सागर में खोयी श्रुति को बच्चों की आवाज सुन जल्दी ही खाना परोसने लगी।

कुछ दिनों यूं ही चलता रहा,

कुणाल का घर, श्रुति, यहां तक कि बच्चों पर भी कोई ध्यान नहीं था।

हर समय चिड़चिड़ापन और बाकी समय बुक्स पढ़ते रहता।

आखिर सहनशक्ति की भी सीमा होती हैं।

अब श्रुति ने ठान लिया कि इन्हें वापस अपनी दुनिया में लाकर ही रहेंगी।

उसने कुणाल पर नजर रखना शुरू किया,

कुणाल आफिस के बाद एक आश्रम गया वहां एक महात्मा बैठे थे, उसने महात्मा जी के हाथ जोड़कर कहा,

स्वामी मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं सन्यास लेने का बच्चों से, पत्नी से बहुत दूर होने की कोशिश कर रहा हूं

थोड़ा समय और लगेगा मैं इन सबसे बहुत प्यार करता हूं इसलिए समय लग रहा है

इनके बगैर रहने में ,परंतु अगर ईश्वर को पाना हैं तो ये मोह माया छोड़ना ही पड़ेगा।

और अपने आंसू पोंछने लगा।

भक्तों के पीछे सिर पर पल्लू ओढ़े श्रुति ये सब देखकर अपने आंसू न रोक पायी।

और आगे आकर महात्मा जी को प्रणाम कर बोली,

“स्वामी जी मैंने भी सन्यास लिया है, और हाँ ईश्वर को पाया भी हैं।”

महात्मा जी आश्चर्य से देखते रहें।

कुणाल ने कहा,

श्रुति तुम यहां कैसे? और तुमने ईश्वर को कब पा लिया? तुमने कब सन्यास लिया?

“जब हमारी शादी हुई तब मैंने अपना सब कुछ आपको सौंपा

वो मेरा पहला सन्यास था और आपको ईश्वर रुप में पाया।

फिर जब अपना स्वार्थ छोड़ अपके परिवार,

आपके माता-पिता की सच्चे मन से सेवा की,

अपनी इच्छाओं का त्याग किया,

आपकी खुशी ही मेरे लिए सब कुछ थी

यहां तक कि मैंने तो कपड़े तक आपकी ही पसंद के पहने,

अपना वजूद तक मिटा दिया,

ये मेरा दूसरा सन्यास था

इसके बाद मुझे आपका मतलब मेरे ईश्वर का भरपूर प्यार मिला।

और जब हमारे प्यारे प्यारे बच्चों का जन्म हुआ वो मेरे लिए किसी तपस्या से कम नहीं था,

फिर तो मैंने अपनी नींद, आराम यहां तक कि अपने खाने पीने की भी परवाह नहीं की

बस बच्चों को अच्छी परवरिश देने में जुट गई।

ये था मेरा तीसरा सन्यास,

इसके बाद जब मैं अपने बच्चों को देखती हूं

तो उनकी भोली सूरत में मुझे ईश्वर के सिवा कुछ नहीं दिखता।

आप बताइए कुणाल क्या आपको बच्चों में ईश्वर नहीं दिखता?

और अगर आप घर और जिम्मेदारियां छोड़कर भाग जाने को सन्यास मानते हैं

तो जैसी आपकी मर्जी पर मेरी बात याद रखियेगा ईश्वर आपको कभी स्वीकार नहीं करेंगे”

“रुको श्रुति मुझे माफ़ कर दो ” रोते और गिड़गिड़ाते हुए कुणाल श्रुति के पीछे आया और बोला

“आज तुमने सन्यास का सही अर्थ मुझे समझाया,

निस्वार्थ भाव से जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी ईश्वर को पाया जा सकता है।”

आखिर श्रुति ने अपने ईश्वर को पुनः प्राप्त कर ही लिया

और कहानियाँ पढ़ें

Photo by Shivam Dewan on Unsplash

शेयर करें
About जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी 17 Articles
नाम--जयन्ती चतुर्वेदी निवास--सनावद , जिला खरगोन शिक्षा--बी एस सी, एम ए हिंदी साहित्य
0 0 votes
लेख की रेटिंग
Subscribe
Notify of
guest

0 टिप्पणियां
Inline Feedbacks
View all comments