
“मेडम जी , आज तो आपका करवाचौथ का उपवास होगा |
वैसे….., कुछ सोचकर, मेडम जी , एक बात पूछूँ? आपको मैंने इतने साल से कभी करवाचौथ का उपवास करते नहीं देखा |”
काम वाली बाई झाड़ू-पौंचा करते करते पूछ रही थी |
वैसे इन बाईयों को किसके घर मे क्या हो रहा है, कौन आया, किसका किसके साथ टाका फिट है सब पता रहता है |
ये चलती-फिरती टेलीफोन होती हैं |
मैं अपने काम मे व्यस्त थी | कुछ सुनकर भी अनसुना कर रही थी |
दिल के एक कोने में टीस थी जो की चुभने लगी , जिसे मैंने बरसो से दबाके रखा था | मैं उस अतीत मे चली गई|
आज जल्दी घर आ जाना | क्यूँ आज क्या है? पहले तो कभी जल्दी आने को नहीं कहा|
आज ऐसा क्या खास है |
आ—-आ—–आवाज़ कप-कपाते हुए करवाचौथ है |
ओह—-|
रूखी हँसी हँसते हुए चले गए |
रोज़ रात को पीकर आना , मार पीट करना जैसे उसके जीवन जीने का आधार बन चुका था |
घृणा होने लगी थी उससे—-|
एक दिन प्रण किया , आखिर किसके लिए और क्यों ये सब दिखावा करुं ?
जिसके लिए एक औरत अपना सब कुछ छोड़कर आती है , एक नया जीवन जीने के लिए आज वही |
बस….. अब नहीं| बहुत सहन कर लिया |
तभी किसी ने आवाज़ दी —–मेडम जी,
मैं शाम को नहीं आऊँगी |
क्यों , आज तेरा उपवास है?
हाँ, कुछ रुखाई से जवाब दिया |
क्यों क्या हुआ ऐसे रूखी सी क्यों बोल रही है ?
मैं उसकी आंखों मे झांकते हुए बोली—
क्या तेरा आदमी तुझे मारता है , तेरे चेहरे पर तो नील के दाग पड़े हुए है|
फिर भी तू उसके लिए अपने को कष्ट दे रही है |
पूरे दिन भूखी रहेगी|
आखिर क्यों—–?
मेडम जी , इसी लिए तो सब सहन कर रही हूँ|
कम से कम मेरे पास मर्द तो रहता है, वरना..
चुप हो गई
क्या हुआ —?
मैं जिस मोहल्ले मे रहती हूँ वहाँ के लोग कबके नोंच डालते मुझे |
मैं उसका चेहरा देखती रह गई |
इस तरह करवाचौथ व्रत रखना हम औरतों के लिए श्राप हें या आशीर्वाद |
मैं आज तक नहीं समझ पाई |
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