
शीर्षक: सूक्ष्म लघुकथा भाग एक
१. सबक
तीन तारीख को महरी का हिसाब करती हुई मालकिन बोली-
“रामरती तूने पिछले महीने दो दिन बिना बताए छुट्टी की थी इसलिए ,तेरे 50/रुपये काट रही हूँ।
तू याद रखे, बता कर ही छुट्टी लेने के लिए सबक दे रही हूँ हाँ—-!”
अगले दिन से ही रामरती ने पूरी छुट्टी कर दी।
क्या मालकिन का सबक पक्का हो गया ?
२. माटी का मटका
माँ जी की मृत्यु के बाद बहुरानी ने रसोई से सिलबट्टा,खरल और पीतल की बटलोई हटा दी थी।
बचा रह गया था तो माटी का मटका।
जो फ्रिज की उपस्थिति में भी मुस्कुरा रहा था।
आज सुबह बाबूजी मॉं का पसंदीदा भजन गा रहे थे।
माटी के मटके तू राम राम बोल——
३. धूप के आरपार
नानी की आँखें बंद थी मानस ने आहिस्ता से मुठ्ठी उनकी नाक के पास रख दी ।
मोगरे की खुशनुमा महक से वे आश्चर्यचकित रह गई।
आँखें खोली तो बहुत समय बाद बेटी और नातिन को देख एयरबेड़ पर लेटी माँ की आँखें मानो धूप से आरपार देखने लगी।
बिटिया बोली
“माँ प्रणाम,देखो आज आपकी बगिया आपसे मिलने आ गई है”
४. खामोश दीवारें
आज अपने बिस्तर से नजर आती हॉल की दीवार पर पोते ने प्रोजेक्टर से कोई नई अंग्रेजी मूवी चलाई है।
पास आकर पड़पोते ने पूछा,
“दादू आपको डायलॉग तो सुनाई दे रहे हैं ना?”
बरसों से लकवाग्रस्त बिस्तर के लॉकडाउन में,
अब पोते के लॉकडाउन में घर आकर काम करने से मानो
दीवारें जीवंत हो गई थी—-!
दादू ने कहा-
“हाँ साफ साफ”
Image by Siddharth Kashyap from Pixabay
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बहुत बढ़िया