
“तुम बेवजह रुक सकते हो, पर न रुकेगा समय प्रवाह
साहित्यकार ओमप्रकाश जोशी जी
सृजनात्मकता ही बन पायेगी, तेरे कुछ होने का गवाह
बीते कल को भूलें, अभी से नव-सृजन प्रवास करें
अपने जीवन -कर्म न भूलें, उन पर पूरा विश्वास करें।”
साहित्यकार ओमप्रकाश जोशी जी के द्वारा लिखी पंक्तियाँ उनके काव्य संग्रह “अतीत में थोड़ा टहल आया” के द्वारा ही हम आज उनकी दिवंगत दिनांक के दिन उन्हें साहित्य श्रद्धा सुमन अर्पित कर कोटि कोटि प्रणाम करते हैं।
इनी जिन्दगी मS अइ वई, गंज का रेपाढेपा खाया ।
कठीन जिन्दगी मS चत्या जो ।
सिदा सच्चा तो यहा तक आया।
जवं जवं सयर गया, गॉठ का पइसा से रोटा खाया।
अपणा बिराणा परखाया, कदि बण्या काम कदि मन समझाया।
मिलेल व्यवहार मऽ कदि रड़ता झिकता कदि हँसता घर आया।
इनी जिन्दगी मS अइ-वई गज का रेपा-ठेपा खाया।
हर ऑफिस मS सूचनानS, जनता कऽ लेण लिखेल छे
बड़ी बड़ी किना काम मS केतरो समय लगी निपटगS किन्ही घडी।
लिखी खाली भरमाया, काम समय पर कदी नी निपटाया।
काइ कसो बतावाँ, छोटा बड़ा एक सरीका सब का सब।
किनो उपाय चलावा, छोटा बड़ा आपस मS मिलेल छे सब।
मिल्यो उस्ताद तंव गावज से कागदी घणा घोड़ा दऊड़ाया।
इनी जिन्दगी मS अई वइ गंज का रेपाढेपा खाया।
गुतेल काम नS मS, भड़ से चाँदी को जूतो, फैकी कऽ मारयो ।
तवं कपटी दुष्ट नSts, काम कऽ खड़दम पट से निपटायो ।
असी, दुनियाँ मS, मिची कऽ डोला, हम बेमन से खूब ठगाया।
इनी जिन्दगी मS अइ वई, गंज का रेपाढेपा खाया।
असा मौका भी आया, बस डूब्या, गंज बुचकल्ण्या खाया।
कोई न हाँसी उड़ई, कोई नS पकड़ बॉवटी पछा घाट लगाया।
घणा अहसान चड्या, हाथ जोड़ी उतारया कई का रह्या बकाया।
इनी जिन्दगी मS अई वई, गंज का रेपा ढेपा खाया।
अकल का टोटा मS, करी लिया गलत भरोसा एका वोका।
पयलाज मौका मS दियो साथ नी, उड़ी गया हाथ का तोता।
बिगड़ी बात मS, भला बुरा बोल का गंज का सोटा खाया।
इनी जिन्दगी मS अइ-वई, गंज का रेपा ढे पा खाया।
हिस्सा वाटा मS, छल कपटसी उन न लई ली पूरी वाड़ी।
दाता किच्ची मS कोर्ट कचेरी तक पोवची घर की गाड़ी।
खरी सलला पऽ फिरी खिसियाणी बिल्ली सा समझोता करन आया।
इनी जिन्दगी मS अइ वई गंज का रेपा ढेपा खाया।
इनी उमर मS आवतS कई चरका मिठ्ठा अनुभव पाया।
अवं पाछी देखण मS काइ मिलगड वकी कृपा से यॉ तक आया।
आग लावण मS उनS भी तन मन झोकी गंज एला उठाया।
इनी जिन्दगी मS अइ वइ, गंज का रेपा ढेपा खाया।
अं वं घर मS अमन चैन छे, सरल स्वभाव का बेटा बेटी।
अं वं मन मS एकज वात छे, सब खाओ मेहनत की रोटी।
अं वं जग मS राखी धिरज, मान सम्मान का दिन आया।
आदरणीय जोशी मौसाजी को सादर नमन 🌷🙏🌷