
प्रथम-वंदन-गुरू-का: गुरू पूर्णिमा के अवसर पर जीवन में मिले समस्त गुरुओं को मेरा शत् शत् नमन।
प्रथम वंदन करता हूँ गुरू का।
जिसने जीवन दर्शन करवाया।
आशीष मिला मुझको उनका
जन्म मैंने इस धरा पर पाया।
शत् शत् वंदन है उनका….
माता पिता से ली प्रथम शिक्षा
कदम रखना उनसें ही सीखा।
उनसे ही शब्द ज्ञान भी सिखा।
शत् शत् वंदन है उनका ….
द्वितीय गुरू है मेरे भाई बहना
सीखा उनसे हिलमिल रहना।
तृतीय गुरू है मित्र सखा सब
जिनसे सीखा आनंद में रहना।
एक दूजे के भावों को सहना।
शत् शत् वंदन है उनका….
फिर मिले ज्ञान की शिक्षा देने
शब्दो का सामंजस्य सिखाने।
जग की नीति रिती समझा कर
मानव जीवन को सहज बनाने।
विद्यालय का मार्ग दिखा कर
जीवन पथ का सब ज्ञान सिखाने।
शत् शत् वंदन है उनका….
एक उम्र के गुजर जाने पर
आध्यात्म की राह दिखाने को।
सद्गुरु मिले धर्ममार्ग दिखा कर
जन्म मरण से मुक्ति दिलाने को।
शत् शत् वंदन है उनका
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