
मकर संक्रांति हम हिन्दूओं का प्रमुख त्यौहार है।ये पूरे देश में बहुत ही जोश और उल्लास से मनाया जाता है।
यह सूर्यदेवता की पूजा, आराधना उपासना का पर्व है।
संक्रांति याने कि संक्रमन करना।उल्लेख है कि सूर्यदेवता एक राशि में एक माह तक स्थापित रहते है।
इस प्रकार बारह महीनों में बारह राशियों में भृमण करते है।
जिस दिन एक राशि को छोड़ते है और दूसरी राशि पर आते है, तो इस क्रिया को संक्रमण कहते है।
ऐसे ही बारह माह में बारह बार ये सक्रमण होता है और उस संक्रमन काल के दिन को संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य अपनी जगह पर स्थिर रहते है।
ये सारी प्रक्रिया पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने का एक हिस्सा है।इसे पृथ्वी का परिभ्रमण कहते है।
इस प्रकार एक साल में कुल बारह संक्रांतियां पड़ती है।
लेकिन केवल मकर संक्रांति को ही महत्वपूर्ण मानते है।क्यों??
क्योकि इस दिन सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण होते है।इस दिन सूर्य कर्क रेखा को छोड़कर मकर रेखा में प्रवेश करते है।
मकर संक्रांति के पूर्व सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित रहते है।हमारा भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। यानि कि भारत से अपेक्षाकृत दूरी रहती है।
जिससे इस कारण यहाँ पर रातें लम्बी और दिन छोटे रहते हैं।बहुत ठंडी का मौसम बना रहता है।
किंतु मकर संक्रांति के दिन से सूर्यदेव दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध में आना शुरू हो जाते है।दिन बड़े होना शुरू होते हैं।रातें छोटी होती है।
दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है, और उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।
मान्यताओं के अनुसार, देवताओं की छः महीनों की रात्रि होती है और छः महीनों का दिन होता है।
दक्षिणायण देवताओं की रात्रि है, और उत्तरायण देवताओं का दिन है।
इस प्रकार से मकर संक्रांति को देवताओं का प्रातः काल की संज्ञा दी गई है।
इसीलिये इस संक्रांति का बहुत महत्व है।
इस दिन किये गये स्नान, दान, धर्म, पुण्य, होम, हवन, श्राद्ध, तर्पण, अग्निहोत्र, याने कि जितनें भी हमारे द्वारा धार्मिक और शुभकर्म किये जाते है।
देवता सीधे ग्रहण करते है।और हम कई गुना पुण्य के भागी बन जाते है।
शास्त्रों के अनुसार–सूर्य मकर संक्रांति के दिन धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते है।मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं।
शनिदेव सूर्यपुत्र है।लेकिन शनि अपने पिता सूर्य से शत्रुता रखते है।क्योकि वे समझते है कि सूर्यदेव के हाथों उनकी माता अपमानित हुई है।और उनसे बहुत दूर रहते है।
तो ऐसी मान्यता है कि सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते है।मकर राशि शनि का निवास है।
तो इस दृष्टि से इस दिन पिता पुत्र के मिलन का दिन रहता है।साल भर में एक दिन मिलते है।इस दिन सूर्य मंदिरों के साथ साथ शनि मंदिरों में भी पूजा अर्चना की जाती है।
हमारे देश में संक्रांति अलग अलग राज्यों में, अलग नामों से, और विविधता से मनाई जाती हैं।
ये सभी जगह की भौगोलिक स्थिति के आधार पर मनाई जाती है।
पंजाब और हरियाणा में इसे लोहड़ी कहते है।
वहाँ पर गुड़, चावल और मक्की के भुने हुये दानों का प्रसाद बांटते है, और मक्के की रोटी खाते है।रात भर नाचना, गाना होता है।
दक्षिण में इसे पोंगल कहा जाता है।किसान अपनी अच्छी फसल के लिये सूर्य देवता को धन्यवाद करते है।
उत्तरप्रदेश में इसे माघी और उत्तरायणी कहते है।वहाँ इलाहाबाद संगम पर इस दिन से एक माह तक मेला रहता है।
वहाँ गंगा स्नान और दान का बहुत महत्व है। तिल, गुड़, खिचड़ी,का दान दिया जाता है
बिहार में खिचड़ी के नाम से जाना जाता है।
गुजरात में सकरात कहा जाता है इस दिन को पतंग महोत्सव भी कहा जाता है।दिन भर लोग अपनी छतों पर पतंग उड़ाते है।
और सारे लोग तमाशा देखते हैं। इस प्रकार धूप में पूरे दिन रहकर विटामिन डी का भंडारण हो जाता है।जिसकी इस सर्दी में कमी हो जाती है।
जिस रूप में भी मनाये स्वरूप एक ही है।
सूर्य की उपासना महाभारत काल में भी भीष्म पितामह जिन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान था।उन्होंने भी अपने प्राण त्यागने के लिये यही दिन तय किया।
गंगाजी भी इसी दिन राजा भगीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम तक आई और सागर में समाई थी।
इसीलिये मकर संक्रांति के दिन गंगासागर तीर्थ में स्नान का बहुत महत्व है।
सूर्य देवता प्रकाश और ऊर्जा के एकमात्र स्रोत है।उनका पूजन,उपासना, और आराधना करके उनके प्रति आभार प्रकट करने का दिन है।
भारतीय उपासना पद्धति बडी विराट एवं मनोवैज्ञानिक है।सूर्यदेव साक्षात प्रकट देवता है।
समस्त देवताओं के मुखिया भगवान भास्कर सम्पूर्ण जगत को धारण करने, और सबको कर्म करने के लिये प्रेरित करने के लिये सभी के वन्दनीय है।
सूर्य की उपासना से मनुष्य सभी दैहिक, दैविक, और भौतिक तापों से छुटकारा पा जाता है।और सूर्य के प्रकाश के समान प्रखर बुद्धि का स्वामी हो जाता है।
भगवान सूर्य का रथ बारह पहियों का है।जो बारह महीनों और बारह राशियों का सूचक है।
हर पहिये के तीस अंश है जो एक माह के तीस दिनों के सूचक है।इस रथ को संचालित करने वाले सात हरे रंग के घोड़े है।
जो सप्ताह के सात दिन के सूचक है। सूर्य का निवास सिंह राशि है जो सर्वशक्ति का सूचक है।इस प्रकार पूरे ब्रम्हांड के पालनहार का रूप है।
जिसमें तीनों देवताओं का स्वरूप भी स्थित है।सुबह का रूप सृष्टि की शुरुआत है। दोपहर का पालनहार का स्वरूप है।शाम को विलय का स्वरूप हो जाता है।
संक्रांति कैसे मनाये
इस दिन सुबह तिल से स्नान करें।सूर्य देवता को अर्ध्य दे।कलश में कंकू, चावल, लाल फूल,डाले।
हमारे मुख और सूर्य के बीच में पानी की धारा आनी चाहिये,और ये अर्ध्य हमें रोज ही देना चाहिये।जिससे आँखे स्वस्थ रहती है।
पूजा में अग्निहोत्र करें जो भी हमारे आराध्य देव हो उनका जप करके या गुरु मंत्र जो भी हो,बोलकर आहुतियां दे।
ज्यादा विधान न मालूम हो तो अग्नि पात्र में कंडे की अग्नि में केवल घी की ही आहुतियां तेरह या इक्कीस बार डाल दें।
तिल गुड़ के लडडू का प्रसाद बांटे।सूर्य मंदिर और दूसरे मंदिरों में देव दर्शन करें।
खिचड़ी और तिल गुड़ का दान विशेष है।गरीबों को कपड़े, गरम कम्बल, और घी का दान भी कहा गया है।
जो भी जरूरत का सामान दे सकें दान में दे।गुड, तिल के लड्डू और खिचड़ी खाने का नियम है|
मकर संक्रांति के दिन तिल्ली का छः प्रकार से उपयोग करने का विधान है।स्नान,दान,हवन,तर्पण, नैवेद्य, और भक्षण।
मौसम के हिसाब से स्निग्ध चीजों का सेवन किया जाता है।मूंगफली, नारियल, बादाम गुड़ ये चीजें ऊर्जा से भरपूर रहती है।
इन दिनों ठंड में हमें केल्शियम और आयरन की सख्त जरूरत भी रहती है।
हमारे अंचल में मकर संक्रांति का त्यौहार दो दिनों तक मनाया जाता है पहले दिन पूजा अर्चना और दान पुण्य के लिये निर्धारित रहता है।
और दूसरा दिन जिसे हम उत्तरांति कहते है।ब्राम्हण भोजन, सुहागनों को सुहाग सम्बन्धी चीजों का दान और अपनें जो साल भर के संक्रांति सम्बंधित व्रत किये हो उनके उद्यापन का दिन रहता है।
हमारे सारे हिन्दू त्योहार व पंचांग चन्द्र गणना पर आधारित होने से तिथियों पर निर्धारित होते है।
लेकिन केवल एक यह मकर संक्रांति का त्यौहार ही ऐसा है, जो सूर्य की गणना पर आधारित है इसलिये इसकी एक निश्चित तारीख रहती है चौदह या पन्द्रह जनवरी।
इसके आगमन के बाद वसन्त ऋतु भी आने को रहती है। थोड़ी ठंडी भी कम हो जाती है।
मनुष्यों में एक अतिरिक्त उत्साह उमंग आ जाता है।जो कि अत्यधिक ठंडी से शिथिल हो गया था।
यह त्यौहार पौष के माह में आता है।मान्यताओं के अनुसार हर मांस के अधिपति एक देवता रहते है।इस पौष माह के अधिपति सूर्य देवता है।
पूजा आराधना बहुत फलदायी होती है।सभी क्लेश मिट जाते है।
बहुत बढ़िया लेखन