विश्वरूप महादेव

देवों के देव महादेव

महादेव यानी सभी देवों के देव , देवता हो या असुर, सभी प्राणियों को समान दृष्टि से देखने वाले कल्याणकारी शिव।

ऐसे भगवान भूत भावन, श्री विश्वनाथ के मंगलमय नामों का महात्म्य व नाम के अनुरूप चरित्र का वर्णन शिव ,स्कंध आदि पुराणों में मिलता है।

उन के पावन चरित्र के अध्ययन से प्राणियों को नैतिक, सामाजिक, कौटुंबिक आदि अनेक प्रकार के बोध होते है।

शिव, जिनका न आदि है न अंत, वह शाश्वत है सनातन है, पूर्ण ब्रह्म है।

पूर्ण में से पूर्ण निकलने पर भी जो पूर्ण व्याप्त रहे वही ब्रह्म है।

पुराणों के अनुसार( मतान्तर से) , हमारा ब्रह्मांड बिंदु से बना है।

एक समय बिंदु में विस्फोट हुआ और ब्रह्मांड बना, निराकार ,ऊर्जा से परिपूर्ण। यह ऊर्जा सिक्त बिंदु शिव ही है।

सृष्टि शिव से आई है और उसी में लीन हो जाएगी।

ऊर्जा को न कोई बना सकता है और ना ही मिटा सकता है ।

सारी सृष्टि शिव मे ही समाहित है।

शिव पुराण के अनुसार संपूर्ण विश्व शिव की 8 मूर्तियों का स्वरूप है:

“शर्व, भव, रूद्र ,उग्र, भीम, पशुपति, ईशान, और महादेव”

भूमि, जल, अग्नि, पवन, आकाश क्षेत्रज्ञ, सूर्य और चंद्र, यह शिव के 8 रूपों से अधिष्ठित है।

  • शर्व रूप चराचर विश्व को धारण करता है( भूमि)
  • भव रूप संसार को जीवन देने वाला है( जल)
  • रूद्र- उग्र रूप प्राणियों के भीतर व बाहर गतिशील रहकर विश्व का भरण पोषण करता है और स्वयं भी स्पंदित होता रहता है( अग्नि -पवन)
  • भीम रूप सर्वव्यापक है, वह महा भूतों का भेदन करने बाला है( आकाश)
  • पशुपति रूप सभी आत्माओं का अधिष्ठान व सभी क्षेत्रों का निवास स्थान है।( क्षेत्रज्ञ- आत्मा)
  • ईशान रूप संपूर्ण जगत को प्रकाशित करता है और आकाश में भ्रमण करता है( सूर्य)
  • महादेव रूप अमृत के समान किरणों से युक्त होकर सारे संसार मैं व्याप्त है( चंद्रमा)

यह आठों रूप सर्वव्यापक हैं इसलिए यह समस्त चराचर जगत शिव का ही स्वरूप है।

शिव के स्थायित्व में, प्रकृति के बिना संसृति की उत्पत्ति ,वृद्धि संभव नहीं थी।

इसलिए ब्रह्मा जी ने शिव जी की शक्ति स्वरूपा के लिए तपस्या की।

तपस्या से प्रसन्न शिव ने अपनी पूर्ण चैतन्य मयी, ऐश्वर्य शालिनी व सर्व काम प्रदायिनी मूर्ति में प्रविष्ट होकर अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया। इस तरह संसृति का विस्तार हुआ।

शिव वृतांत, हमारी दैनिक नैतिक व चारित्रिक प्रज्ञता से भी परिपूर्ण है।

हलाहल विषपान कर शिव जी ने उसे कंठ में ही रोक लिया, ना उदर में उतारा ना ही बाहर निकाला।

विश्व का कल्याण करने वाला ही विषपान कर सकता है।

शिवजी के गले में सर्प दर्शाता है- काम, क्रोध, मोह ,मद।

यह विकार व्यापक है, लेकिन उनका उदात्तीकरण किया जाए तो यह बाधक नहीं है। ज्ञानी पुरुष दोषों को अपने अंदर नहीं आने देते।

शिव जी जली हुई चिताओं की भस्म शरीर पर लगाते हैं, वे उसे आत्मा से जोड़ते हैं।

जीवन के बाद गुण अवगुण कुछ नहीं रहते। उन्होंने प्रपंच को जलाकर भस्म रूप में सार तत्व को ग्रहण किया ।

शिवजी के एक हाथ में त्रिशूल व एक हाथ में डमरू है।

त्रिशूल सत्, रज , तम गुणों का प्रतीक है, साथ ही संहार का भी द्योतक है।

वहीं डमरु से नाद की उत्पत्ति हुई, डमरु संगीत व ज्ञान का प्रतीक है।

उन्होंने सृजन व विसर्जन दोनों से ही सृष्टि का श्रृंगार किया।

शिव जी शीर्ष पर ज्ञान गंगा को सहज ही समेटे हुए हैं।

गंगा जिस प्रकार शिवजी की जटा से निकलकर अविरल, निर्बाध बहती है ,उसी प्रकार मानव को भी कठिनाइयों को पार करते हुए , ज्ञान मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ना चाहिए।

शिव जी ने भाल पर दूज के चंद्रमा को धारण किया है।

दूज का चंद्र कर्मयोग का प्रतीक है। सच्चा कर्मयोगी ही विश्व के लिए कल्याणकारी है।

शिव दिगंबर है, संपूर्ण विश्व को आच्छादित करने वाले तत्व को आच्छादन की आवश्यकता ही क्या!

शिव त्रिलोचन है, सच्चा ज्ञानी अपनी ज्ञान अग्नि से कामनाओं को जला देता है।

शिव के ललाट पर त्रिपुंड ब्रह्मा, विष्णु व रूद्र का सार तत्व है।

शिव हिमआच्छादित ऊंचे शिखर पर विराजमान है।

मानव का चरित्र भी शुद्ध हो तभी उसका ज्ञान शोभायमान होगा। ऊंचाई पर पहुंचने के लिए कल्याण का ही मार्ग है।

आध्यात्म व शिव समरूप है।

उनके नटराज स्वरूप में बाया पैर दाहिने पैर के ऊपर हवा में है , जो भौतिकता का प्रतीक है।
सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो शिव जी का परिवार विलक्षण है।

शिवजी गृहस्थ है , फिर भी सन्यासी रूप है। गले में सर्प व वाहन नंदी, देवी पार्वती का वाहन सिंह। कार्तिकेय हमेशा कल्याणकारी युद्ध के लिए तत्पर, और उनका वाहन मयूर।

ज्ञान मयी गणेश शांत व सौम्य, उनका वाहन मूषक। सभी पशु एक दूसरे के परस्पर शत्रु। ग्रह शांति के आदर्श की शिक्षा हमें शिव परिवार से मिलती है।

ऐसे शशिशेखर, गंगाधर, गिरीश्वर, नीलकंठ, भुजंग भूषण, भस्मोध्दूलितविग्रह, भूतभावन मंगलमय ,कल्याण व ज्ञान के स्वरूप

श्री विश्वनाथ, देवों के देव महादेव को कोटि-कोटि नमन।

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चंचला प्रकाश शुक्ला ऐम. ए. हिंदी साहित्य , गृहिणी
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स्वधा पंडित
स्वधा पंडित
2 years ago

बहुत ही सारगर्भित व उत्तम जानकारी प्रदान करने वाला लेख है।आपकी लेखनी ऐसे ही धर्म आध्यत्म से जुड़े सन्दर्भो पर चलती रहे व हमे नई नई जानकारी मिलती रहे।