
चतुर्थी के दिन आकाश में सूर्य व चंद्रमा की स्थिति ऐसी कक्षा में होती है, कि उस दिन मानव का मन सहज कार्यों को करने के लिए प्रेरित होता है, जो मानव के जीवन और प्रगति में अवरोध रूप बन सकता है ।
इसलिए चतुर्थी के दिन होने वाली बाधाएं और विध्नो को रोकने के लिए गणेश जी की उपासना की जाती है, ताकि उस दिन मन संयमित रहे व अमंगलकारी आचरण ना हो।
गणपति :
• गण याने आठ दिशाएँ
• पति याने पालन करने वाला
गणपति आठ दिशाओं के स्वामी हैं। गणेशजी की दो पत्नियां-सिद्धि और बुद्धि
• बुद्धि याने बुद्धिमत्ता
• सिद्धि याने आध्यात्मिक सामर्थ्य या क्षमता
गणेशजी के दो पुत्र
• लक्ष्य सिद्धि का
• लाभ बुद्धि का
सिद्धि-बुद्धि-लक्ष्य-लाभ और गणपति यह पूरा परिवार हमारे जन्म से जीवन के अंत तक हमारे साथ होता है। सरस्वती और लक्ष्मी गणेश जी की भार्या नहीं है, फिर भी यह दोनों गणेश जी के साथ पूजी जाती है।
सरस्वती कला, विद्या और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है और लक्ष्मीजी धनधान्य और ऐश्वर्य को बढ़ाने वाली है। तात्पर्य यह है कि, विद्या से ही समृद्धि है और समृद्धि में बुद्धि का अहम योगदान है।
गणेश जी स्वस्तिक रूप व प्रणव स्वरूप है। गणेश जी का बायाँ अंग भावनात्मक बल का व दाहिना अंग बुद्धि का प्रतीक माना गया है। गणेश जी की मूर्ति में हमेशा दाहिने पैर को बाएं पैर से ऊंचा दिखाया जाता है, मतलब यह कि गणेश जी भावना से बुद्धि को ज्यादा महत्व देते हैं। इसलिए हमारे जीवन में गणेश चतुर्थी व्रत की महत्ता है.
बहुत ही उपयोगी जानकारी एवं अच्छी प्रस्तुति