
राम पर क्या लिखूँ मेरी कलम में इतना सामर्थ्य नही की राम अनंत महिमा कह सकूँ ।
मेरे शब्दों में इतनी भक्ति नही की राम के पावन चरित्र को कह सकूँ।
राम के पुरषोत्तम स्वरुप को कहने के लिये मेरी शब्दावली तिनको से भी अधिक छोटी है।
राम के चरित्र को केवल वहीं समझ सकता है , जिसने राम जैसे चरित्र को चरितार्थ किया हो ।
हम तो राम चरित्र के पैरो की धूल समान भी नही है।
राम पतित पावन नाम मात्र का केवल हम गुणगान कर सकते है ।
अगर हम राम के सच्चे भक्त है तो राम की महिमा पर हमें कभी भी संदेह नही करना चाहिये।
भ्रांतियों से भ्रमित नही होना चाहिये ।
कही सुनी बातों पर राम के चरित्र पर कभी भी संदेह नहीं करना चाहिये।
जिस तरह सीता के परित्याग के प्रसंग पर बहुत से लोग राम पर आक्षेप लगाते है की राम भगवान कैसे हो सकता है ।
जो अपवादों के कुचक्र में फंसकर अपनी सहधर्मिणी का त्याग कर दे।
प्रथम तो यह की हमें हमारे आराध्य पर शंका है तो हमें आराधना करने का ही अधिकार नही।
दूसरा हमारी आस्था अशक्त है।
वह राम जो अपनी जन्मदात्री माता से पहले अपने भाइयों की माताओं के चरण पखारे ।
वह राम के चरित्र को समझना हमारी बुद्धि के सामर्थ्य में नही।
जो राम अहिल्या की शिला के भी चरण छूकर उसे दिव्य लोक प्रदान करे।
वह राम जो कैकयी की कुटिलता को जानकर भी ,माता की आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर राजपाठ त्याग कर वनगमन करे ।
जो सीता का पग पग पर वन में ध्यान धरे और सीता हरण पर दुखी हो, कर सीता के विरह मे वेदना करे ।
वन वन अपनी सीता की खोज कर।
लंकापति रावण से स:सम्मान अपनी पत्नी को छुडाने के लिए राम सेतु का निर्माण कर ,
राक्षसों का वध करे ,
जो भक्ति के वश होकर भिलनी नारी के झूठे बेर ग्रहण करे।
जो अयोध्या आगमन पर सर्वप्रथम कैकेयी के चरण स्पर्श करें।
जो मंथरा दासी की कुटिलता पर भी उसे माता कहकर प्रणाम करे ।
वह राम जिसने समस्त नारी जाती के सम्मान की दृष्टि से देखा हो ।
वह अपनी स्त्री का त्याग राजपाट के सुख के लिये कैसे कर सकते है।
राम ने नीति और धर्म के लिए केवल सीता को जाने से रोक नही पाये।
क्योंकि सीता स्वयं अपने पति के पतिधर्म के मध्य आकर राज धर्म में रुकावट नही बनना चाहती है।
रामचरित पर संदेह करना हमें शोभा नही देता ,क्योंकि हमने कभी राम को समझा ही नही ।
राम को समझने के लिये राम बनना होता है।
और राम केवल एक ही जन्मा है।
राम तो राम है।
राम पर क्या लिखूँ ।
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