
पेंटिंग : संगीता बर्वे
करे योग रहे निरोग । योगा बिना नही होगा । योग ही निदान है।
आदि आदि पंक्तिया आजकल बहुत सुन रहे है हम !
लेकिन क्या आपने कभी गहनता से इस पर विचार किया है?
की ये योग आख़िर है क्या?
दूरदर्शन के पर्दे से लेकर जिम तक आजकल योग (पाश्चात्य की विकृत भाषा में योगा) बहुत प्रचलित हो चला है!
यहाँ वहाँ हमको बच्चे, वयस्क और अधेड़ सभी इसे अपनाते हुए नज़र आ रहे है,
कोई वृक्षासन मुद्रा में है
तो कोई कपाल भाती प्राणायाम कर रहा है !
ये आकस्मिक जागरूकता योग के प्रति, इक्कीसवीं सदी की अनुपम भेंट है।
लेकिन क्या सिर्फ़ शरीर के लचीलेपन का उपयोग विभिन्न मुद्राओं में ढलने के लिए करना ही योग है ?
हमारे पूर्वज और महान ऋषि मुनि हमको इस महान और अद्भुत विज्ञान के बारे में समझा गए है
की योग आख़िर है क्या?
भिन्न भिन्न शास्त्रों में विभिन्न परिभाषाएं है, इस अद्भुत महान आध्यात्मिक विज्ञान की ।
महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योग सूत्र में उन्होंने शुरुआत की है

अथ योगानुशासनम, योगश्चित्त वृत्ति निरोध:!
महर्षि पतंजलि
इस एक पंक्ति का वृतांत यहाँ सीमित शब्दों में बता पाना असम्भव है। लेकिन महा संक्षिप्त में अर्थ है ,
“चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।”
योग की एक और परिभाषा श्री भगवद गीता में लिखी है ,
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते है कि
योग: कर्मसुकौशलम ।
इसकी भी व्याख्या कुछ शब्दों में करना सम्भव नहीं परंतु फिर भी कहा जा सकता है संक्षिप्त में की
कर्म की कुशलता में हि योग है।
योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के युज शब्द से हुई है जिसका की अर्थ है
योग, जुड़ जाना या एक हो जाना ।
अब सोचनेवाली बात यह है कि किसको जोड़ने की बात हो रही है यहाँ ?
कुछ भी जोड़ने के लिए दो तत्व होना आवश्यक है।
हमारी अंतरात्मा के परमात्मा से योग की बात हो रही है यहाँ!
अत: योग की प्रक्रिया वो सशक्त बाण है
जिससे आत्मा और परमात्मा का मेल कर समाधि का लक्ष्य साध जाता है ,
जिससे की मोक्ष की प्राप्ति हो सके ।
योग हमको बाहरी अन्नमय कोष ( शरीर ) से आनन्दमय कोष की ओर सकुशल के जाने का माध्यम है।
अतः योग में शरीर का अत्यंत महत्व है
लेकिन इसका लक्ष्य शारीरिक आरोग्यता में ही सीमित कदापि नहीं है ,
ये तो योग का सह-प्रभाव माना जा सकता है ,
अंतिम और एकमात्र लक्ष्य मोक्ष पाना हि है !
ये भी सच है, की आजकल की आपाधापी वाले जीवन में ये लक्ष्य कहा तक हम हासिल कर पाएँगे ,
या ये कहें कि यह अभ्यास व्यावहारिक भी नहीं है ,
अत: अगर हम इतना ही प्रयास करे की इस महान विज्ञान से हमें अगर आरोग्यता प्राप्त हो और जीवन में संतुलन ( भीतर और बाहरी ऊर्जाओं के बीच ) आ जाए तो भी यह अभ्यास सार्थक हो जाए।
तो आओ आपको एक अनोखी यात्रा पर के चलूँ,
जहाँ आप मानसिक शांति,
असीमित आनंद, आरोग्य शरीर और अप्रतिम आत्मबोध से अपने को अवगत करा सके !
हम यहाँ हर सप्ताह में एक आसान की वृहत जानकारी लेंगे
और योग पर चर्चा करेंगे और योग के प्रति जागरूकता बढ़ाएँगे।
आज का आसन – सुखासन
1. मेरुदंड (रीढ़ की हड्डी) को सीधा रखते हुए कुर्सी पर या ज़मीन पर आसान बिछाकर बैठ जाइए
2. अगर कुर्सी पर हैतो आपके दोनो पंजेपूरी तरह सेज़मीन का स्पर्शकरेऔर ज़मीन पर हो तो पालथी मार कर बैठे।
3. कंधे और दोनो बाजू शिथिल करे ,पैर और घुटने भी ।
4. दोनो कलाईया ध्यान मुद्रा में ( तर्जनी उँगली अंगूठेको स्पर्श करे ) घुटने पर हल्के से टिका दीजिए
5. गर्दन शिथिल, चेहरेकी मांसपेशिया भी एक एक करके शिथिल कर ले
6. दोनो आँ खो की पुतलियाँदोनो भवो के बीच केंद्रित करेऔर श्वास पर ध्यान लेजाए !
7. यह आसन को ध्यान लगानेके लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
8. प्रतिदिन १०-१५ मिनट यह आसान लगाने से मानसिक शांति मिलती है।
मुझे यह अवसर प्रदान करने का डाक्टर भावना बर्वे को सहृदय आभार ।
पुन: मिलते है।कोई भी प्रश्न या सुझाव आमंत्रित है,
धन्यवाद
बहुत सरल शब्दों में, बहुत सुंदर रूप से योग की व्याख्या की है। उसके लिए आपको साधुवाद।
“शब्दबोध” ने वास्तव में हमारी समृद्ध संस्कृति की सीपी से मोती निकालने का सराहनीय प्रयास किया है। “शब्दबोध” को हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत ही सुन्दर लेख…संक्षेप में आपने योग मानसिक शांति, आरोग्य पर उपायों पर खूबसूरती से प्रकाश डाला।
आपको साधुवाद..🙏🙏
बहुत बढ़िया , बधाई, शुभकामनाएं💐💐
बहुत ही सुंदर एवं सरल। बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।
योगा शिक्षिका जी आपको बहुत बहुत बधाई ।