
कटघरे में नाक??? ये कैसा बेतुका सवाल है।
नाक तो हमारे मुख मण्डल की शोभा है, उसके लिये ऐसा कहना क्या सही है?
हम सभी जानते है कि हमारे शरीर में नाक की क्या अहमियत है।
पांच इन्द्रियों में से एक की गिनती में गिनाई जाती है। नाक ही की सुंदरता का पैमाना माना जाता है।
चपटी नाक, मोटी नाक, छोटी नाक, मनुष्य की सुंदरता को कम कर देती है।
वहीं बड़ी व पतली सुतवां नाक चेहरे पर चार चाँद लगा देती है।
भले ही डील डौल में व्यक्ति कैसा भी हो, सुंदर ही माना जायेगा।
अब आप कहोगे कि ये कौनसी नई बात कह दी, ये सारी बाते तो हम सभी जानते है।
लेकिन अब जो बात कहने में अब सामने आयेगी, उस पर आप और हम सभी सोचने पर विवश हो जाएंगे।
वो यह कि इतनी सब खूबियों के बावजूद इस नाक में ऐसी क्या बात है कि–
भले ही गलती किसी दूसरे की हो, अपराध कोई और ने किया हो और सजा इस नाक को मिले।
कैसे??
कि अगर बेटी लव मैरिज कर लेती है तो पिता की नाक कट जाती है, बेटे ने अगर इंटर-कास्ट लड़की पसन्द की है,
तब तो पूरे परिवार की ही नाक कट जाती है।
क्यों भई!!!
बीच में नाक कहाँ से आ गई?
अरे—अगर नाक काटना ही है तो जिसने जुर्म किया है उसकी काटो!
तब भी बात समझ में आती है।
ये क्या हुआ कि ” करे कोई भरे कोई “
इतना जुर्म तो शरीर का कोई भी अंग सहन नहीं करता जितना कि नाक को करना पड़ता है।
वहीं अगर हमारा बेटा या बेटी अच्छा काम करता है किसी बात मे नाम कमाता है
या कोई अपना सगा कुछ करिश्मा कर दिखाता है तब पिता का तो क्या,
सारे परिवार का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है।
देखा कितने भेदभाव वाली बात!!
ये सिर जो मेरे विचार से किसी भी काम का नहीं है, ख़ामख़ा चेहरे का चालीस प्रतिशत हिस्सा घेरकर बैठा हुआ है।
शरीर में कोई खास अहमियत भी नहीं रखता।
उसके लिये इतनी बड़ी बात!
इतना मान।
सिर के सम्मान के लिये ना जाने कितने अनमोल, गर्वीले, सम्बोधन हैं।
जैसे कि—
सिर गर्व से उठना, सिर उठाकर बात करना, कभी भी सिर नहीं झुकाना।
चलो मानते है कि हरेक को अहमियत मिलनी चाहिये।
लेकिन इस नाक के लिये क्या कहा जाए। इसे कभी तो कोई इज्जत बख्शें।
अरे– ये हर समय चौकन्नी रहती है, जरा देर के लिये भी विश्राम नही लेती।
अगर हम ज्यादा चल-फिर लेते है तो पैर दर्द करें,
काम कर लेते है तो हाथों मे दर्द,
आये दिन इस पेट को तो शिकायत ही रहती है।
आठ घण्टे पूरे शरीर को आराम देना ही पड़ता है।
नहीं तो हम दूसरे ही दिन बीमार हो जायें।
लेकिन नाक?
क्या इसने कभी आराम चाहा है,
आप और हम सभी जानते है कि ये कभी विश्राम का सोचे तो!!
इसके बावजूद ये हमारे मुखमंडल पर प्रहरी की भाँति डटी हुई है।
अगर हमारा मुख किसी चपेट में आता है तो सबसे पहले ये प्रहार सहती है।
अगर ईश्वर न करे आप सर्दी जुकाम से पीड़ित होते हो तो आपकी सुंदरता में कमी नही आने देगी खुद लाल गुब्बारा बनी बैठी रहती है।
यदि कोई आपकी तारीफ करता है तो फूलकर आभार प्रदर्शन करती है।
महिलायें तो इसी नाक की बदौलत अपनी सुंदरता को निखारती है।
कभी लौंग पहनती है तो कभी नाना प्रकार की नथनियाँ।
कभी किसी ने या कि महिलाओं ने भी आभार प्रकट किया है? कि ये ना होती तो क्या ये काम सम्भव हो पाते।
कभी कभी तो यहाँ तक सुनने में आया है कि कोई व्यक्ति से अगर कोई अक्षम्य अपराध हो जाता है
तब तो फिर सारे समाज की ही नाक कट जाती है!!!
समाज के ठेकेदार घोषणा कर डालते है कि फलाँ फलाँ की हरकत ने तो समाज की नाक काट के रख दी।
अब हम दूसरे समाज वालों को क्या मुँह दिखायेंगे।
लो साहब!!!!
कटना ही है तो उस आदमी की नाक कटे, ज्यादा से ज्यादा उसके घरवाले अपनी नाक कटवाये।
पूरा समाज क्यों नाक कटवाने की ज़हमत उठाये,
लेकिन यहाँ तो नाक ही सस्ते में है तो फिर लोग उसी का इस्तेमाल क्यों ना करे।
बेटी को ससुराल विदा करते समय माता पिता बेटी को लाड़ लड़ाना तो बाद कि बात है, यह कहकर भेजते है कि, देखो बेटी, ऐसा कोई भी काम मत करना कि हमारी नाक नीची हो।
कोई कहता है कि बेटी, हमारी नाक न कटे। हमारी नाक बचाना।
अरे—तुम्हारी नाक क्या किसी के पास अमानत के तौर पर रखी है,
या ये कि किसी के पास गिरवी पड़ी है, जिसे कि कोई भी सम्हालें, या मनचाहा इस्तेमाल करे।
आप की नाक है आप सम्हालो और कभी इसे भी गर्व से उठाओ, जिस गर्व पर सिर एकछत्र अधिकार करके बैठा है।
और तो और यदि कोई व्यक्ति घमंडी है, तो लोग कहते है कि उसके नाक पर तो निम्बू भी नहीं टिकता।
कोई महिला या पुरुष अगर सीधे मुँह बात नहीं करेंगे तो उसे नकचढ़ी या नकचढ़ा की उपाधि से विभूषित किया जायगा।
याने कि सारी बुराइयों का ठीकरा एक ही के मत्थे फोड़ा जाता है और वो है नाक!!!
अब हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि आखिर नाक पर ही सवालिया निगाह क्यों रहती है सबकी।
आखिर कौन लोगों ने नाक को इज्जत का सवाल और प्रतिष्ठा की निशानी मान ली है?
इन सब बातों से तो यही निष्कर्ष निकलता है कि इस नाक के सीधेपन का फायदा उठाया गया है।
ये ना ही हिलती है ना डोलती है, ना ही चीखती चिल्लाती है, चुपचाप अपने काम से काम रखती है।
क्या इसी सीधेपन का फायदा उठाकर सारे जुल्मों का भार इसी पर थोप देते है।
एक बार स्कूल में मास्टर जी ने बच्चों को डपटते हुये कहा कि तुम्हारी शरारतों से नाक में दम आ चुका है, अब तुमसे पढ़ाई में कड़ा परिश्रम करवाना पड़ेगा
कड़ा परिश्रम का मतलब जानते हो—बच्चे एक साथ चिल्ला उठे कि” मास्टरजी नाकों चने चबवाना “
अब क्या कसर छोड़ी नाक की अच्छी खासी छीछालेदर बेईज्जती में।
लेकिन ये तो सरासर अन्याय है।
मेरे ख्याल से ये किसी जमाने में केवल मुहावरे तक ही सीमित रहे होंगे।
धीरे धीरे सफर करते हुये इन्होंने वास्तविक जिंदगी में इतनी पैठ कर ली है कि जीवन के हर सख्त मुकाम पर इसे आगे कर दिया जाता है।
कुछ भी हो,मेरी इस बात पर गौर करियेगा, और कुछ समाधान ढूंढ पाओ तो हमें भी बताइयेगा।
भई हम तो बहुत विचलित है इस अन्याय पर।
आपकी क्या राय है इस बात पर?
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