
आपने पढ़ा कि किस प्रकार धरती के पर्यावरण का सौंदर्य आग, पानी, हवा, धरती और आकाश के संगम से निखार पर आता रहा ।
एवं मनु से परिवार, परिवार से समुदाय और समुदाय से ग्राम बसने लगे।
अब आवश्यकता थी , संगठन के सुचारू संचालन की ,,,,,,,
नियमावली की , सुद्रढ़ कानून की, और कानून व्यवस्था को व्यवस्थित रूप से लागू करने की।
स्वाभाविक तौर से इस कार्य को सम्पादित करने का उत्तरदायित्व ब्राम्हण समुदाय को सौंपा गया।
स्थल नामकरण
स्वाभाविक रूप से जिस स्थान पर जिस व्यक्ति/परिवार/समुदाय/वर्ग ने रहने की शुरुआत की अथवा जो उस क्षेत्र के बहुसंख्यक होंगे उन्हीं के नाम से स्थल का नामकरण होगा। वह स्थान , फल्या, टोला अथवा मोहल्ला कहलायेगा, इन फल्या, टोले, मोहल्ले को मिलकर ग्राम बसाया जायेगा।
ग्रामों को मिलाकर सूबा, सूबों को मिलाकर राज्यों का गठन , राज्यों को मिलाकर एक राष्ट्र का निर्माण किया जायेगा
प्रत्येक फल्या, टोले , मोहल्ले का प्रधान होगा सारे प्रधान की समिति, सन्नीयम होंगे , ये सब मिलकर ग्राम प्रधान/पटेल चुनेंगे ।
ग्राम प्रधान सूबे का प्रधान , सूबे के प्रधान, राज्यों के प्रधान और राज्यों के प्रधान राष्ट्र का प्रधान चुनेंगे , चूँकि इन पदाधिकारी वर्ग को अपने अपने क्षेत्रों की सुरक्षा, आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था का भार निर्वहन करना है अतः यह कार्यभार क्षत्रिय समाज को सौंपने की सिफारिश की गई।
तत्कालीन समय में सिर्फ कृषि उद्योग एवं भोज्य संसाधन (बर्तन) , तन ढंकने के लिये वस्त्र हथियार सामग्री (तीर , तलवार, भाले इत्यादि) ही की अनिवार्यता आँकी गई , अतः व्यवसाय करने का दायित्व किसानों, ठठेरा, बुनकर और लुहारों को सौंपा गया।
उपरोक्तानुसार सभी प्रकार के समुदाय को अपने अपने कार्यक्षेत्र में सहायक की आवश्यकता होगी तो वह अपने कार्य के लिए सहायक समुदाय के सदस्यों के परिवार के भरणपोषण के बदले में कार्य करवाने लगा एवं उपरोक्त सभी कार्य में ब्राम्हण एवं क्षत्रिय समाज के परिवारों की आजीविका कैसे होगी ?
इसके लिए नियम बनाया गया कि व्यवसायी समुदाय जैसे सहायक समुदाय के पालनपोषण का दायित्व ले रहे हैं वैसे ही , क्षत्रिय समुदाय का भी जीवन निर्वाह करने में अपनी आमदनी का दसवाँ हिस्सा अपने प्रधान के माध्यम से इन तक पहुंचायेगे।
ब्राम्हण वर्ग को आचार्य बनाकर, शिक्षा, पर्यावरण एवं कृषि कार्यों के सही समय और तरीके से सीखने के बदले दक्षिणा प्रदान करेंगे।
कालांतर में आवश्यकता अनुसार आश्रम, मन्दिर में परिवर्तित होकर , सलंग्न भूमि पर कृषि कार्य कर भी आजीविका साधन हुआ।
इसी प्रकार क्षत्रिय वर्ग को भी कृषि कार्य हेतु भूमि आबंटन करना आरम्भ हुआ।
इस प्रकार भूमि उपयोग करते हुए जीवन आगे बढ़ता गया। साथ साथ ही जन और पालतू जानवरों की संख्या में भी वृद्धि होने लगी , और जंगल तथा जंगली जानवरों की कमी होने लगी।
साथ ही जंगल में रहकर ध्यान करते हुए जो ऋषी मुनि , आगामी विकास के लिए मनन करते थे, उन्हें जंगल में जो सुविधा चाहिए थी , जैसे जड़ीबूटी, शान्ति इत्यादि उनमें व्यवधान उत्पन्न होने लगा।
तब कदाचित , यह नियमावली बनी
— चूँकि उस समय कृषि कार्य वर्षाकालीन ही रहा (वर्तमान में भी अधिकांश क्षेत्र में वर्षाकालीन कृषि ही होती है) अतः नियमावली को धर्म से जोड़ा गया
नाग पंचमी को बोहनी के बाद का पहला त्यौहार बनाया गया, नाग को सर्वप्रथम तो देवता के रूप में विराजमान किया और उनकी पूजा का प्रावधान किया गया । (विष्णु जी की शैय्या, शिवजी की गलमाला, लक्ष्मण और बलराम
कारण)
किसान जब बीज की बुआई करते हैं, तब चूहों का प्रकोप आरम्भ होता है, चूहों का भक्षण नागराज करते हैं , अतः नागप्रजाति को सुरक्षित रखना आवश्यक है।
परन्तु चूहों द्वारा कुतरने से मिट्टी की नरमाई बनी रहती हैं अतः उन्हें भी गणेश जी की सवारी बनाया गया। जंगलों की सुरक्षा में गजराज का भी महत्वपूर्ण स्थान है अतः गजराज को गणेश जी के रूप में पूजने का अनुरोध किया गया।
वर्षाजल की पहली बूँद क्षेत्र के सबसे ऊँचे स्थलों पर गिरती है, उस बूँद को वहीं के वहीं रोक लिया जाये तो, निचले स्तर का जलस्तर बढ़ेगा। अतः उन उच्चस्थलों पर देवियों को स्थापित किया, सिंह की सुरक्षा के लिए सिंह को देवी का वाहन बनाया गया।
इन स्थापित धर्मस्थलों पर पदयात्रा करने से थकान महसूस होती है, अतः प्रसाद के तौर पर नारियल और गुड़ का प्रावधान रखा गया, नारियल गुड़ खाने से पुनः ताजगी महसूस होती है।
क्रमशः