
प्रकृति प्रदत्त संसाधनों में जल एक अमृत तुल्य स्त्रोत हैं।
कोई भी मनुष्य, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, पेड़-पौधें आदि को जीवित रहने के लिए जल परम आवश्यक हैं।
इसके बगैर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
क्योंकि जल हमें प्रकृति द्वारा मुफ्त में मिलता हैं शायद इसीलिए हम इसकी कद्र नहीं करते।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो किसी दिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती हैं हम सबको।
जल को संचित करने के तरीकों को अपनाया जाना चाहिए जैसे बारिश के जल को भूमि के अंदर ही बड़े बड़े, गहरे कूप बनाकर उन्हें एक दूसरे से जोड़कर जल को संग्रहित किया जाना चाहिए।
ग्रीष्म ऋतु में जब जल की कमी हो जाती हैं तब यहीं जलकूप बहुत सहायक होंगे और फसलों को भी पर्याप्त मात्रा में जल मिलेगा जिससे फसलों की पैदावार भी बढ़िया होगी।
पानी को बचाने के लिए हम घर से ही शुरुआत कर सकते हैं, बच्चों को पानी के महत्व के बारे में समझायें , व्यर्थ पानी न बहाने की हिदायत दी जायें।
घर हो या आफिस हो ध्यान रखें कि कोई भी नल खुला न हों या पानी न टपक रहा हों, ऐसा हो तो जल्दी ही ठीक करवाना चाहिए।
धार्मिक रीति से भी देखा जाएं तो “जल को धन” के सदृश्य ही माना गया है|
जल का व्यर्थ बहना अर्थात धन का व्यर्थ कार्यों में खर्च होना।
नदियों को हम मां की तरह सम्मान देते हैं, पूजा करते हैं।
इसके बाद उसी मां को प्रदूषित करते हैं, विसर्जन सामग्री को बहाते हैं, और फैक्ट्रियों के रसायन युक्त पानी को नदियों में जाने देते हैं|
आदि कई प्रकार से हम हमारी प्राण-प्रदायिनी नदियों को प्रदूषित कर रहें हैं।
लाकडाउन के समय देश के सभी जल स्रोत बहुत स्वच्छ हो गये थे। नदियों का असली सौंदर्य देखने को मिला।
यहीं तो इनका सम्मान करना हैं|
उनके ऊपर दिये लगाने, फूल पत्ती चढ़ाने से नहीं, बल्कि स्वच्छ रखने से ही सही मायने में पूजा अर्चना मानी जायेगी।
नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए कुछ अनुशासन और नियम सरकार के द्वारा बनाएं जाने चाहिए।
क्यों न हम हमारे इस अमूल्य प्राकृतिक धरोहर को संचित रखें, स्वच्छ रखें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को विरासत में धन से बढ़कर भरपूर जल-धन मिलें
जो अमृत तुल्य हैं।
“जल ही जीवन है”
“जीवन का सम्मान करें”
Image by rony michaud from Pixabay
जीवन शैली में और पढ़ें : शब्दबोध जीवन शैली