
आज महिलाओं ने हर क्षैत्र में सफलता हासिल की हैं और साबित कर दिखाया हैं कि महिलाओं को मौका मिलें तो वे सबकुछ कर सकती हैं।
कुछ वर्ष पहले तक ,जब कभी जरुरी काम से बाहर जाना पड़ जाएं तो माता पिता अपने बच्चों को आस-पड़ोस या किसी भी रिश्तेदार के पास निश्चिंत होकर छोड़ दिया करते थे।
आज सबकुछ बदल चुका हैं, आस-पड़ोस तो क्या सगे संबंधियों पर भी विश्वास कर पाना मुश्किल है। आज बेटियों की सुरक्षा ही सबसे बड़ा मुद्दा है
पन्द्रह वर्ष से पचास वर्ष तक किसी भी पुरुष की कब नियत बदल जाएं,कहा नहीं जा सकता और अंजाम एक हंसती खेलती जिंदगी खत्म हो जाती हैं।इन सबके के लिए जिम्मेदार कौन है,
समाज, माता-पिता या सरकार ?
जो भी हो, परंतु ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाना अत्यंत आवश्यक हैं।
अश्लील वीडियो देखने, शराब या और किसी प्रकार का नशा करने वाले, ऐसे कुकर्म करते हैं। सर्वप्रथम तो इन सब पर सख्त पाबंदी लगा दी जानी चाहिए।
माता-पिता अपनी बेटियों को ही नहीं बेटों को भी अच्छे संस्कार दें और अच्छी संगति दें महिलाओं का सम्मान करना और सुरक्षा करना सिखायें।
सरकार बच्चियों की अच्छी शिक्षा के साथ ही स्वंय की सुरक्षा कैसे करें इसकी ट्रेनिंग की व्यवस्था भी विद्यालयों में ही करवायें। ताकि हर वर्ग को इससे फायदा हों।
समाज बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए हर स्तर पर प्रयास करें। बेटी हो या बहूं हो उसे पढ़ाएं, उसकी क्षमताओं को पहचान कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।
जो भी व्यक्ति बेटियों या महिलाओं के साथ कुकर्म करता हैं उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाएं, जिससे भविष्य में कोई ऐसा करने का सोचें भी नहीं।
घरेलू हिंसा को महिलाएं सहन करती रहती हैं कभी समाज के डर से तो कभी माता पिता के सम्मान की खातिर और ज्यादातर तो बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए, सब कुछ खामोशी से सहती रहती हैं।
उनको स्वंय ही कदम आगे बढ़ाना होगा और समाज उसको एक अच्छा जीवन देने के लिए मदद कर सकता हैं।
महिलाओं को समाज में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है और वो भी दोहरी जिम्मेदारियां सफलतापूर्वक निभाते हुए।
महिलाओं को परिवार में थोड़ा सम्मान और प्रेम मिल जाएं, यहीं उसके लिए पुरस्कार के समान हैं। परंतु ये अफसोस की बात हैं कि वह पूरी तरह समर्पित हो जाती हैं फिर भी उसे वो सम्मान नहीं दिया जाता जिसकी वह हकदार हैं।
नारी तू नारायणी
इसे बोलने सुनने से नहीं, इसे मानने से बात बनेगी।
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महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार एवं समाज समहिक तौर पर जो प्रयास कर रहे है वे मेरे हिसाब से बेमानी है। महिला सशक्तिकरण के लिए तक मानसिकता में व्यापक बदलाव नही आएगा तब तक कुछ भी कहना बेमतलब है। प्रायः हम देखते है कि राजनीति के क्षेत्र में महिला आरक्षण को बढ़ावा दिया जाता है पर उस आरक्षण का लाभ किसे होता है ये सभी जानते है। महिलाये सिर्फ दिखावे के लिए चुनाव लड़ती है और जितने के बाद उनके स्थान पर उनके पति या परिजन प्रतिनिधि के तौर पर सत्ता का सुख लेते है। ये कभी नही सुना कि पुरुष के स्थान पर उसकी पत्नी या अन्य पारिवारिक महिला ने प्रतिनिधि के तौर पर सत्ता संभाली हो।
महिला सशक्तिकरण सिर्फ बोलचाल के लिए अच्छा है व्यव्हार में नही आया है। इसे व्यवहार में लाना आवश्यक है।
विचारणीय