
शीर्षक : ऑनलाइन की परीक्षा
पहले जब कभी ऑनलाइन, मुंह से निकलता था|
तो मुझे मेरी बुद्धिमता पर भयानक रूप से विश्वास होता था|
मैं बुद्धिजीवी हूं|
मैं टेक्नो सेवी हूं|
मैं नेट का उपयोग करती हूं|
इस सारी खूबसूरत बातें मेरे व्यक्तित्व को आल्हादित कर जाती थी|
पर जब से यह करोना कॉल आया है हर कोई ऑनलाइन है|
और ऑनलाइन की परीक्षा जो असाधारण होती थी, अति साधारण की कोटि में आ गई है|
बस यही मेरे दुख का विषय है, जिसको मैं समझती थी, बुद्धिमत्ता का ऑस्कर अवॉर्ड, वह अति साधारण की श्रेणी में आ गया है।
अरे साधारण भी नहीं वह तो बिल्कुल जिंदगी में सांसो की तरह आ हो गया है|
न कोई ध्यान देता है |
न कदर करता है |
क्या करें?
पहले कबूतर होते थे जो चिट्ठी ले जाते थे|
ऑनलाइन, हवा में |
वह सारा इश्क का कारोबार भी ऑनलाइन ही होता था|
ऑफलाइन तो हम ही रहते थे जो माता-पिता की मर्जी से जिंदगी गुजारते थे |
अब छोटे-छोटे बच्चे भी ऑनलाइन हो गए हैं |
जब किसी बच्चे को टेबल पर बैठे अपने मोबाइल से अपनी टीचर से बात करते देखती हूं |
प्रश्न उत्तर करते देखती हूं तो लगता है, कि हम वही जुमेराती कन्या शाला की टाट पट्टी वाली कक्षा में आ गए हैं।
और पूरा का पूरा स्कूल हम पर हंसने भी लगा है और बतियाने भी लगा है|
न केवल बतियाने बल्कि उपदेश भी देने लगा है|
किसका ??
अरे वही कोरोनावायरस का का, और किसका ?
Photo by Nick Morrison on Unsplash
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ऑनलाइन परीक्षा