
अनंत और व्यापक आकाश और उसमें उड़ान?
हम स्त्रियाँ सबको उसके हिस्से का आकाश दे तो सकते है, पर जब स्वयं के जीने की बारी आती है तो उतना ही जी पाते है, जितना दूसरों ने हमें दिया होता है, या हमारे लिए चुना गया होता है।
मैंने तो उसी आकाश को जिया है जिसकी अपनी सीमाएं थी और जो निर्धारित सा था। अंतहीन व्यापक व्यक्तित्व का विकास या उड़ान भी होती होगी, पर मुझे अपनी विकास करने वाली उम्र में तो उसका ज्ञान हुआ नहीं।
ऐसा नहीं है कि वो सुरक्षित आकाश बुरा हो, पर बस उस गोल गोल घेरे में ही आपको सारी उड़ाने भरनी होती है, असुरक्षा का हौआ इस जमाने में इतना प्रबल था कि एक 6 साल का बच्चा भी हमें सुरक्षा का भरपूर एहसास दिला जाता था|
जब मां कहती थी जाओ दीदी के साथ जरा चले तो जाओ “दीदी अकेली जा रही है”
बहुत ढोया इस वाक्य को हमने। पर अब 50 के बाद से अपने आकाश में तृप्त हो उड़ रही हूं, कलम मेरी सखी है, मेरा अपना सामाजिक दायरा है, मेरी अपनी सखियाँ है, मेरी उल्लसित चाय पार्टियां है, घूमना भी है और हाँ थोड़ा सजना भी है।
सूर्य की ढलती लालिमा में अंत हीन और व्यापक आकाश बहुत ही खूबसूरत लग रहा है, मेरा चेहरा ही नहीं सम्पूर्ण व्यक्तित्व मुस्कुरा उठा है।
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