
बात उस समय की है ,जब हमारी शादी हुए 2 साल हुए थे।
सात भाइयों का संयुक्त परिवार, सासु मां, ससुर जी, बच्चे सब मिलाकर करीब 35 सदस्य एक साथ, एक ही घर में रहते थे ( बहुओं में मेरा छठा नंबर है)।
सभी त्यौहार बड़े उत्साह से मनाए जाते थे। और फिर होली का त्यौहार ,बड़ा परिवार, तो कहने ही क्या, होली प्रीत के हर रंग से सरोबर हो जाती थी।
सुबह सबसे पहले कौन किसको रंग लगाता है, यह शर्त रात ही से लग जाया करती थी।
सुबह होते ही रंगना रंगाना शुरू। दिन भर खूब होली चलती, खूब मस्ती होती |
लेकिन मेरे दोनों बड़े जेठ जी को कोई रंग नहीं लगाता, किसी ने शायद कभी हिम्मत ही नहीं की।
जिस होली का यह संस्मरण है, उस दिन भी खूब रंग जमा। 2- 3 बजे तक रंग खेलने के बाद सब सुस्ताने इधर उधर हो गए।
पहले कभी कोई रंग छुड़ाने की कोशिश नहीं करता , सब एक दूसरे का इंतजार करते|
मालूम था कि जिसने पहले रंग निकाला वह फिर रंगा जाएगा। इसलिए सब गपशप करते रहते।
उस दिन मैं व मेरी जेठानी ( पांचवा नंबर) एक कमरे में बैठे बात कर रहे थे, ध्यान आया कि भैया( दूसरे नंबर के जेठ जी) 3:00 बजे नीचे आते हैं।
होली की मस्ती में हम दोनों को शैतानी सूझी। हमने एक बाल्टी में रंग घोला और भैया के नीचे आने का इंतजार करने लगे, जैसे ही भैया नीचे आए हमने बालकनी से उनके ऊपर पूरी बाल्टी रंग डाल दिया, और छुप गए।
डरे भी की गलती तो कर बैठे, अब डांट खानी पड़ेगी।
रंग में भीगे भैया ऊपर आकर जोर से बोले, “किसने किया यह सब सामने आओ”। उन्हें मालूम था कि बच्चे तो करेंगे नहीं, कौन हो सकता है, शायद समझ ही गए हों।
उनके जोर से बोलने से हम दोनों बहुत डर गए , कि पता नहीं अब क्या होगा। पूरा परिवार इकट्ठा हो गया, सिवाय हम दोनों के।
बात और बढ़े उससे पहले ही हम दोनों भगवान को मनाते ,घूंघट कर भैया के सामने पहुंचे, उन्हें प्रणाम किया और नीचे मुंह करके खड़े हो गए।
भैया बहुत जोर से हंसे व हम दोनों को खूब आशीर्वाद दिया और बोले “मैं समझ गया था, कि यह शरारत इन दोनों की ही हो सकती है।”
बड़े भाभियों ने अगले ही दिन सभी को बुलाकर होली के गीत गवाये , फूल गुलाल की होली खेली, पेड़े बांटे और ठिठोली कर कहती रहीं की हमारी बहुओं ने कल जेठ जी के साथ होली खेली।
बड़ों के आशीर्वाद और प्रेम भरी ऐसी रंग बिरंगी मधुर होली सदैव मनती रहे ,यही हर फाग की आकांक्षा है।
बहुत खुब
बहुत सुंदर लिखा है
होली का अच्छा संस्मरण।बधाई।