एक थी दाई माँ- हीरा

दाई माँ

महामारी के दौर में जब चिकित्सा जगत में चारों और लुट मची है । अस्पताल वाले और डाक्टर खूब चाँदी काट रहे है ।मुझे याद आ रही हैं मोहल्ले की दाई माँ ।

जिसने उपचार एवम् प्रसूति के लिये कभी किसी से ना कभी फ़ीस माँगी ना ही कोई इनाम माँगा था ।

आजकल तो साधारण प्रसूति में भी चिराफाडी के नाम से हज़ारों नहीं लाखों तक वसूल कर लेते है।

किन्तु दाई माँ जब तक रही निःस्वार्थ सेवा करतीं रही।

नाम था हीरा किन्तु आदर से सभी लोग उन्हें माँ साब कह कर के बुलाया करते थे ।

हमारी शादी को क़रीब छ:महीने हो चुके थे ,

घर में कुछ अच्छी खबर की फुसफुसाहट होने लगी थी तो एक दिन मेरी सासु माँ ,दाई माँ को बुला लाई ।

मेरी सास ने उनसे कहा,

ज़रा बहु को देख लो यानि मुझे, हमको तो ये कभी कुछ बताती नही है ,आप ही देख लो।

उनकी की नजर इतनी तेज थी कि मुझे देखते ही बोली अरे देखना क्या है सास को बोली तुम दादी बनने वाली हो।

ऐसी थी हमारी माँ साब -हीरा ।

वो तो मोहल्ले वालों के लिये एक चलता फिरता अस्पताल थी।

मोहल्ले में कोई भी बिमार हो चाहे बच्चा या बूढ़ा या फिर किसी की प्रसूति,

सबसे पहले दाई माँ को याद किया जाता था ।

उनके लिये किसी भी समय बुलावा आ जाता और वो उठ कर चली जाती थी।

बग़ैर किसी साधनके पैदल ही , चाहे कितनी भी दूर हो बग़ैर किसी ना-नुकर के।

एक प्रकार से दाई माँ मोहल्ले में एक डाक्टर के रूप में थी ।

जब तक कोई गंभीर बीमारी से ग्रस्त ना हो , अस्पताल जाने का नाम नहीं लेता था।

या फिर कोई गंभीर चोट लगी हो जिसके लिए आपरेशन की ज़रूरत हो तो ही लोगों को अस्पताल की याद आती थी।

वरना दाई माँ के पास हर छोटी बड़ी तकलीफ़ का देसी देसी इलाज था ।

मोहल्ले में अधिकांश बच्चे इन्ही के हाथों जन्मे है इसीलिए उनका अत्यंत आदर और सम्मान करते थे।

उस ज़माने में यदि लड़की होती थीं तो दाई माँ बहुत ही ख़ुश होती थी , घर में लक्ष्मी आई है ।

किन्तु इन सबसे उलट हर परिवार की ख्वाहिश होती थी की हमारे यहाँ लड़का ही हो ,

जो कुल का नाम रोशन करेगा सासु माँ और मेरी भी यह इच्छा थी कि लड़का ही हो ।

मैं इनका इंतज़ार कर रही थी कि कब ये आये और ख़ुशी की बात का इज़हार करू ।

मन ही मन ख़ुश थी कि अब मैं माँ बनूँगी ,

एक सपना आँखों ही आंखो में तैर गया यदि लड़का हुआ तो उसे मैंने डाक्टर ही बनाना है ।

दाई माँ कुछ बातें सासु माँ को बता कर जाने लगी , तो देखा कि बाहर से मेरे पति आ गये है।

मेरे पति बड़ी अचरज भरी नज़रों से देख रहे थे, कि दाई माँ मेरे घर क्यों कर आईं सब ठीक तो है ।

पति ने सासु माँ और दाई माँ को प्रश्न भरी नज़रों से देखा और प्रणाम किया

दाई माँ ने आशीष के साथ बड़ी ही आत्मीयता और रहस्यमयी मुस्कान के साथ बोला,

बहु का ध्यान रखना ।

पति कुछ भी नहीं समझ पाये।

मै अन्दर कमरें में बैठी सोच रही थी ये कब अन्दर आये तो बताऊँ

कि घर में ख़ुशियाँ आने वाली है और लड़का ही होने वाला है।

कुछ दिनों का इंतज़ार तो करना पड़ेगा ।

जाते जाते दाई माँ ये भी कह गईं कि कहीं जाने की ज़रूरत नही है, प्रसूति घर पर ही हो जायेगी, मैं हूँ ना।

ये दाई माँ काँ आत्मविश्वास था कि मेरे होते हुये किसी भी महिला को अस्पताल की मुँह ना देखना पड़े ।

उन्होंने कभी किसी से मेहनताना या इनाम नाही मांगा और उनको कोई चाहत थी।

कहती थी भगवान मेरे हाथों जो भी बच्चा हो स्वस्थ रहें यही मेरा इनाम है हमेशा दुआ ही देती थी ।

जब किसी के लड़का होता था तो लोग ख़ुशी में कुछ ना कुछ बतौर इनाम दे ही देते थे ।

किन्तु लड़की होती तो टाल देते थे माँ साब लड़की हुई है काहे की ख़ुशी,

हमारा तो नसीब ही फूट गये अब लड़की को पालो पोसो और एक दिन बिदा करदे यही तो चलन है ।

यही बातें अक्सर दाई माँ को सुनने को मिलते यही इनाम होता था

जैसे ही पति देव अंदर आये मैं बोली सुन लिया ना दाई माँ को , फिर भी वो मुझे देखते रहे ।

आख़िर मैं ही झल्ला कर बोली आप को तो बाप बनने पर भी ख़ुशी नही है तो कब ख़ुशी होगी।

इतना सुनना था कि वो उछल पड़े और बोले

सच , मैं बोली सचमुच ।

इतना सुनना था बस पति बोले मेरी चाह हैं घर में गुड़िया आये और बोले गुड़ियों से खेले।

इतना सुनना था तो मैं बोली गुड़िया क्यों? हर कोई चाहता है लड़का ही हो, अरे बड़े गुड़िया से खेलने वाले ।

ख़ैर वो दिन आ ही गया तो पति बोले चलो अस्पताल चले मैंने कहा माँ साब है सम्भाल लेगी अपनी माँ को बोलो कि दाई माँ को बुला लाये ।

हमारी पहली ख़ुशी बिना किसी परेशानी के लड़की का आगमन हो गया ,मैं और बच्ची ठीक थे ।

दाई माँ और मेरे पति ख़ुश थे, किन्तु सासु माँ उदास हो गई थी ।

लड़की है माँ साब को जाने दो ।

फिर भी पति ने माँ-साब को प्रणाम किया और कुछ पैसे दे ही दिये ।

सासु तो इसके पक्ष में नहीं थी

दाई माँ के लिये लड़की का पहला इनाम था

वरना लोग टरका देते थे दाई माँ ने ढेर सारी बधाइयाँ मुझे और पति को दी

ऐसी थी हमारी दाई माँ ।

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Photo by aceofnet on Unsplash

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गंगा देवी तिवारी , इन्दौ्र गृहिणी
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