
मेरे पांच साल के बेटे को खाना खिलाते हुए ।
मैंने ऐसे ही पुछ लिया, की बेटा जब मैं बूढ़ी हो जाऊँगी ,जब मेरे हाथ पैर काम नही करेंगे तब मुझे ऐसे ही खाना खिलाओगे ना।
उसने स्वीकृति देते हुए अपनी गर्दन हिलाई।
अगली ही सुबह जो कि बहुत व्यस्त होती है। मुझे अपने बेटे को स्कूल के लिए तैयार करना था।
मैं उसे नहलाने के लिए बाथरूम की ओर बड़ी वह हाथ छुड़ा कर भाग गया।
मुझे गुस्सा आया उसे पकड़ा और डांटते हुए एक चाटा जड़ दिया।
वह रोने लगा।
थोड़ी ही देर बाद मैं उसे समझाते हुए कहने लगी की
“देख बेटा मम्मा को सबेरे बहुत से काम होते है और तु भी परेशान करता है , इसलिए मुझे गुस्सा आजाता है।
इसलिए मैं तुझे डांटती हूँ पर मम्मा की बात का बुरा नही मानते।”
वह चुप होकर पिछले दिन की बात याद करते हुए कहता है।
अच्छा तो ठीक है जब आप बूढ़े हो जाओगे ओर आप मुझे परेशान करोगे ओर मैं आप को डाटुँगा तो आप भी बुरा मत मानना।
उसकी यह मासुम बात में मुझे बहुत गहराई लगी इस लिए सब के साथ साझा की ।
आज माता पिता पर बहुत से लेख पढ़ने में आते है। अपमान मत करो माता पिता को बोझ मत समझो ।
मगर मुझे ऐसा लगता है कि हमारे देश के 75℅ बेटे पूरी तन्मयता से अपने माता पिता की सेवा करते है।
बाकी 25 प्रतिशत जो है शायद उन में संस्कारों की कमी हो ,या फिर परंपरा रही हो उनकी, क्योकि जो हम बचपन से देखते आ रहे है ,हम वही सीखते है।
हमारे माता पिता को उनके माता पिता की सेवा करते हुए हमने देखा तो हमने भी वही संस्कार पाया ।
हमने उन्हें अपमान करते देखा, तो हमने वही सीखा।
विचारो में भले ही मेल ना हो पर इसका ये अर्थ तो नही की दिलो में प्रेम नही है।
खट्टी मीठी नोंक झोंक के साथ रिश्तों का ये दायित्व बखुबी निभाया जाता हैं।
मनुष्य के जीवन मे एक पड़ाव ऐसा भी होता है।
जहाँ माता पिता की सेवा के साथ ऐसी कई जिम्मेदारियां होती जिन्हें निभाना पडता है।
घर में बच्चे भी है और वृद्ध भी कई जवाबदारी भी है ।
उन्हें बिना किसी परेशानी के संभालने का तनाव भी ।
इस जद्दोजहद में व्यक्ति थोड़ा चिड़चिड़ा हो जाता जो कभी न चाहते हुए भी तेज बोल जाता हैं ।
इसका यह अर्थ नही की वह माता पिता पर अत्याचार करता है।
जिस प्रकार माता पिता काम के तनाव से अपने बच्चे पर चिढ़ जाते है ।
वहीं वो कभी अपने माता पिता से भी उलझ जाते हैं।
वो कहते है ना बुढ़ापा बचपन का पुनरागमन होता है।
वैसे माता-पिता केवल जिम्मेदारी या रिश्ता मात्र नही है ।
सार्थक जीवन हैं, पूजा है , अनुभव है ,शिक्षा हैं ,और सबसे बड़ी बात वह हमारे अपने है।
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बहुत बढ़िया संस्मरण ।
Thanks didi