हमारे दादा जी – एक हकीकत

दादा जी

बहुत ही पुरानी बात है करीब 40-50 साल पुरानी वैसे तो मेरे दादा जी बहुत ही सरल स्वभाव के थे|

हंसमुख व प्रसन्न चित रहने वाले हमें बहुत ही प्यार करते थे| पर हम बहुत ही छोटे-छोटे थे, कुछ याद नहीं|

उन्हें इतनी कहानी आती थी, अगर कोई गाँव में मर जाए रात्रि जागरण करने के लिए एक कहानी 12 या 15 घंटे की होती थी|

पता की नहीं चलता था कब रात हुई और दिन निकला हंसा हंसा कर सबको लोटपोट कर देते थे|

पर व्याख्या, एक मैंने जब बड़े हुए तो दादाजी ने बताया था, उनके ही मुँह से सुना था, वह मैं सबको सुना रही हूँ|

हुआ यूं था,

पहले के जमाने में कहीं भी जाओ, गाड़ी बेल पर गाड़ी को सजाओ| पर्दे की गाड़ी पर घूमने के लिए जाते थे|

एक बार ब्रह्मा गिर के मेले में गांव की सभी महिलाएँ सात से आठ गाड़ियां मेले के लिए जा रही थी|

रात का समय था सभी बहने सोने चाँदी के गहनों पहनकर जा रही थी|

आधे रास्ते में चोरों ने हमला बोल दिया मेरे दादाजी भी साथ में थे|

हाथ को हाथ भी नहीं दिखाई दे रहा था|

तब कहाँ लाइट था ,सब चंद्रमा की रोशनी में धीरे -धीरे सभी गाड़ियां चल रही थी |

चोरों को देखकर चिल्लाहट हो रही थी, सभी महिलाएँ बच्चे खूब डर रहे थे|

मेरे दादाजी पहलवानी जानते थे|

गाड़ी चलाते-चलाते धीरे -धीरे गाड़ी वालों से, कहा चुपचाप गाड़ी हांको सब की गाड़ी को पीछे कर स्वयं आगे होकर होकर गाड़ी चलाने लगे|

उन्होंने सोचा नारायण आज तेरी परीक्षा है|

आज तेरी परीक्षा है अगर यह बहनों को कोई हाथ लगाएगा चोरी करेगा तो तेरी इज्जत तो गई|

पता नहीं उनके अंदर कहाँ से इतनी शक्ति आ गई|

दूर से ही उन्होंने देखा 10 से 15 की संख्या में चोर थे|

गाड़ी के ऊपर खड़े हो गए बहुत ही मोटा डंडा उनके हाथ में रहता था रहता था|

बहुत जोर से चिल्लाए “आओ सालों किसके बाप में ताकत है”|

बहुत ही बुलंद आवाज जो रात की गहराई में और भी तेज हो गई|

चोरों को लगा हमसे भी ताकतवर है | चोर दुम दबाकर भाग गए|

यह बहुत पुरानी घटना है, जो कि हमारे दादा जी ने सुनाई थी।

Photo by Tarikul Raana on Unsplash

और संस्मरण के लिए देखें: शब्दबोध संस्मरण

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श्रीमती अनुराधा सांडले खंडवा
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