
मैंने प्रोफेसर बनने का सपना साकार करने के लिए सारे मापदंड तय कर लिये थे।
मेरठ शहर के एक बडे कॉलेज के लिए आवदेन भी किया। साक्षात्कार के लिए बुलावा भी आ गया |
मैं भी सपना सच होने का इंतज़ार करने लगी। निर्धारित समय पर कॉलेज पहुँच गयी |
बुलावे का इंतज़ार करने लगी। तभी कॉल वेल बजी |
सामने सम्मानित व्यक्तियों की पंक्ति थी। मैंने सभी का अभिवादन किया।
साक्षात्कार का सिलसिला शुरु हो गया | मेरी शैक्षणिक उपलब्धियों की सूची देखकर उनके अधर में मुस्कान तैर गयी |
मुझे भी उम्मीद की किरण नजर आई।
प्रश्नों का सिलसिला शुरु हुआ। अचानक मेरी प्रगति की गाड़ी को ब्रेक लग गया। यह ब्रेक अंग्रेजी भाषा का था |
प्रबन्धक ने अपनी स्पष्टता व्यक्त किया कि आपको हिन्दी और अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाना पड़ेगा |
मैंने भी अपना पक्ष रखा कि श्रीमान् मैंने हिन्दी अध्यापन के लिए आवेदन किया है और हिन्दी को अंग्रेजी माध्यम से कैसे पढ़ाया जा सकेगा?
मेरा उत्तर सुनकर उनका जवाब बदल गया |
उन्होंने भी अपना जवाब सुना दिया कि आपको हिन्दी भी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाना पड़ेगा।
मैं भी निराश होकर अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी| पर कहीं न कहीं मेरे मन को संतुष्टि थी कि मैंने अपने हिन्दी का मान रखा |
अपने शहर जाने के लिए बस में सवार हुई।
इसके साथ ही आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी की ये पंक्तियां मेरे मन को दिलासा देने लगी
“हिन्दी देश की आत्मा है, आप देह से पाण को अलग करके कैसे जी सकते हैं और वह भाषा ही नहीं बल्कि भक्ति है। करोड़ों लोग जिसे प्रातः उठने से लेकर रात्रि में शयन तक पल-प्रतिपल जीते-बोलते हैं, आप उसे दूसरे पायदान पर (अंग्रेजी के बाद) कैसे रख सकते हैं “
आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी
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