
‘ऋषति-गच्छति संसारपारं इति ऋषि:।’
यह ऋषि की व्याख्या है।ऋषि की बुद्धि ईश समर्पित होने से ऋषि चिंतन में मानव को बदलने की शक्ति होती है।
“लौकिकानां हि साधुनामर्थं वागानुवर्तते।
ऋषीणां पुनराध्यानाम वचमर्थोंनुधावति।।”
सामान्य अलौकिक साधु या सज्जन अर्थ का विचार करके वाणी उपचार करते हैं, किंतु आद्य ऋषियों की वाणी के पीछे अर्थ स्वयं दौड़ कर आता है। ऋषि को मानव समाज पर अंतः करण का प्रेम होता है।
मानव संस्कृति के उत्थान के लिए सभी ऋषियों ने अनगिनत,अतुल्य,अनुपम,महान कार्य करते हुए अपना सर्वस्व न्योछावर किया है।
मेरे गोत्र के अनुसार में पाराशर ऋषि के बारे में कुछ जानकारी साझा करूंगी जो मुझे स्वाध्याय (पांडुरंग शास्त्री आठवले जी की पुस्तक ऋषि स्मरण) से मिली है।पाराशर ऋषि ने धरती पर स्वर्ग लाने के लिए 10 सिद्धांतों का प्रतिपादन कर वांग्मय लिखा:-
- जीवन सिद्धांत निश्चित व त्रिकाल बाधित हो। (तात्विक,व्यावहारिक, कौटुंबिक)
- उपरोक्त सिद्धांतों के व्रतियों को जगत में बुद्धि, चित्त, शरीर शक्ति के प्रवाह को तैयार करना।
- बुद्धि, वित्त, शारीरिक शक्ति का प्रवाह एक ही दिशा में हो।
- जीवन पुष्टिमय हो।
- क्षत्रियों की युयुत्सुवृत्ति(शूरता) व प्रतिकार क्षमता को पुष्ट करना।
- प्रभावी नेतृत्व।
- स्त्री शिक्षण तेजस्वी हो;स्त्री भाव, गुण, पूजा को ।
- वैभव प्राप्ति के लिए सतत प्रयत्न।
- ज्ञानी ब्राह्मण शक्तिशाली क्षत्रिय वैभवशाली वैश्य का संगठित कार्य ।
- परमात्मा के प्रति प्रीति, भीती, आत्मीयता।
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