खूब सजा घर

पुराना घर

शीर्षक: पुराना घर

एक साधारण से कस्बे में एक घर था जिसमे रूठी, मनाई, और लाल, हरे ,पीले, नीले, रहते थे ।

उस घर की दीवारें कुछ कच्ची थी, कुछ पक्की थी, उस घर के कमरे भी कुछ पक्के थे और कुछ कच्चे भी थे।

उस घर में चूल्हा भी था,,, सिगड़ी भी थी,,, स्टोप भी था,, और गैस भी था ।

सारे लोग सारी चीजों का उपयोग करते रहते थे ।

अलगनी भी थी,, आला भी था ,,,कपड़े टांगने की अलगनी भी थी।

कपड़े टँगे भी रहते थे और घड़ी करके रखे भी रहते थे।

एक खाट थी,, जो रात को पर बिछा दी जाती और दिन में खड़ी कर दी जाती थी।

दिन में किसी के आने पर बहुत आदर से दरी बिछा दी जाती थी।

चाय पीने का नियम था कि कप भी भरा हुआ चाहिए और प्लेट भी।

तब हम सपने देखते थे कि

कब हमारा घर भी सुंदर सजा सजाया होगा,

सजावट के कोने,

कांच की प्लेटें,

पतले लंबे कांच के गिलास।

ऐसी रसोई, जिसमें ऊपर एक भी बर्तन नहीं दिखता है , जाने कहां अंदर अंतर्ध्यान से छुपे रहते हैं।

केवल सनमाइका के चमचम दरवाजे दिखते रहते हैं।

कुछ भी ऊपर सामने नही होता,,, केवल एक साफ सुथरा गैस रहता है।

कांच की बरनी ,फल रखने की प्लेट अलग होती है, जो गजब की होती है।

क्या खूबसूरत।

और पलंग ,पलंग नही बेड होता है ।

उसके ऊपर बेड कवर होता है करीने से बिछा ।

यह नहीं कि दिनभर चादर बिछा दी और उसी पर फ़टकार के रात को सो गए।

बेड कवर अलग चादर अलग, क्या खूबसूरत बात है जी।

और यह सब हुआ ,यह सपना भी सच हुआ,

खूबसूरत घर, अलग-अलग कमरे ,अलग-अलग बेड

एक दो तीन चार अलग-अलग बाथरूम, सब कुछ हुआ ।

खूब सजा घर बहुत बहुत नफासत पसंद था ।

खूब सजा घर अपने आप को साफ रखने में सक्षम था,,।

उसमे डस्टिंग होती थी, उसके सोफो पर झट दाग लग जाते।

उसका चमचमाता फर्श सांस फूंक हवा सबसे गन्दा हो जाता,

उसके पतले कांच के ग्लास गाते गाते तो धुल ही नही सकते थे,

झट टूट जाते, पोंछे की सफाई के भी दाग बन जाते,,,,।

अब काम और गाना अलग अलग हो गया था।

अब काम के साथ डर और सावधानी, जुड़ गई थी,

और गाने के साथ हेड फोन।

रूठी मनाई भी हक्का बक्का सी रहने लगी,

लाल हरे पीले नीले रंग,

उस खूब सजे घर मे पैबंद से लगते।

अलगनी तो इस घर मे तुरंत ही छिपकली बन गयी

अंदर वश एरिया और बाहर लगे छोटे झाड़ के आसपास घूमती रहती

रूठी मनाई भी सोच रही थी तितली बन जाऊं

पर उड़ने की समस्या थी

लाल हरे पीले नीले अपना रंग थोड़ा अंग्रेजी से करने में लगे थे

भले ही पैबंद से हों पर थोड़ा तो घुले मिले लगें

रूठी मनाई और लाल हरे पीले नीले, रात को सोते तो पुराना घर कच्ची पक्की दीवारों के साथ हंसता हुआ आ जाता

जिसमे सारे रंग और चटक हो जाते और रूठी मनाई एक दूसरे पर तकिया फेंक के कौन होगा महाबली का खेल खेलती |

जोर जोर से गाना गाती,,,, और कप प्लेट में चाय सुड़कती ।

खूब सजे घर की अब तमन्ना जंगल मे घूम रही थी।

Photo by Nick Fewings on Unsplash

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About माया कौल 13 Articles
एम ए एल एल बी अध्यक्ष तक्षशिला महिला ग्रामोत्थान समिति अध्यक्ष भूतपूर्व सैनिक परिषद(मातृशक्ति) मालवा प्रान्त जनरल सेकेट्री भूतपूर्व सैनिक परिषद(मातृशक्ति) दिल्ली कौंसलसर, वन स्टॉप सेंटर महिला बाल विकास मास्टर ट्रेनर सेफ सिटी इंदौर गद्य पद्य लेखन में रुचि, संस्कृति साहित्य मंच द्वारा गणतंत्र सम्मान, दीपशिखा सम्मान एवं सृजन साधना सम्मान मिला है।
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