
जीवन एक बंगला
जीवन बना एक बंगला,साँचे में ढाल, चित्त चेतनासद्कर्म लगा कर लोहा,राम-नाम, सजाया जंगला। सत की ईट, ज्ञान की रेती,घोल प्रेम सीमेंट है लगाई,हरि नाम बनाई […]
जीवन बना एक बंगला,साँचे में ढाल, चित्त चेतनासद्कर्म लगा कर लोहा,राम-नाम, सजाया जंगला। सत की ईट, ज्ञान की रेती,घोल प्रेम सीमेंट है लगाई,हरि नाम बनाई […]
कटघरे में नाक??? ये कैसा बेतुका सवाल है। नाक तो हमारे मुख मण्डल की शोभा है, उसके लिये ऐसा कहना क्या सही है? हम सभी […]
एक खुली चिट्ठी – ” ऊपर वाले ” के नाम (अब यहाँ यीशु या ईश्वर या अल्लाह या और कुछ इसलिए नहीं लिखा क्योंकि ये […]
जीवन का उद्देश्य वैसे तो प्रकृति की सभी घटनाएँ मानव जीवन को प्रभावित करती हैं और कुछ ना कुछ शिक्षा अवश्य देती है परंतु सूर्योदय […]
पिछले अंकों में आपने पढ़ा कि किस प्रकार से धरती को प्रकृति ने अपने अमोल उपहारों से श्रृंगारित कर, मानव जाति को अपने जीवन जीने […]
सोशल मीडिया का हमारे सामाजिक जीवन पर कितना प्रभाव पड़ा है और इसके कितने अच्छे व बुरे परिणाम हुए है,इसके बारे में थोड़ा विचार ज़रूर […]
उम्र और किस्मत : कितनी बार कहा मैंने की मेरे साथ चलो लेकिन तुम फिर भी पीछे रह गई ! मुझे देखो मैं तुमसे कितनी […]
“तुम बेवजह रुक सकते हो, पर न रुकेगा समय प्रवाहसृजनात्मकता ही बन पायेगी, तेरे कुछ होने का गवाहबीते कल को भूलें, अभी से नव-सृजन प्रवास […]
गुरु ग्रंथन का सार है, गुरु है प्रभु का नाम,गुरु आध्यात्म की ज्योति है, गुरु है चारों धाम। प्रिय पाठक वृंद, मानव की लिए आध्यात्मिक […]
जब तक मुस्कुराती हुई आँखें शेष हैं।तब तक शेष है,गिर जानाऔर फिर उठकर खड़े होना,हर ज़ख़्म का भरते जाना,माफ़ करना और भूल जाना,अपने सबसे पास […]
शीर्षक: गुड़िया की शादी क ख ग घ नाच रहे हैझ झाड़ी में उलझ गया है,अ ब स को कौन बुलाये,,,ढ से ढोल को कोई […]
झरने की झंकार सुनअनमने पेड़ झूम जातेवीरान वादियों मेंखुश हो लहराते झरने कल कल यू बहतेपर्वतों को चीर राह चुन लेतेअपनी मौज में बहतेबरखा में […]
ये करोना से म्हारे बढ़ो डर लागे घर- घरमें पग पसारे, जो सुनी लेउ लोगां की बाता हाथ पाँवम्हारा फुलि जावे, दवाखाना मं जगा नई […]
शीर्षक : बंद दरवाजा की दस्तक हर तरफ अब खामोशी छाई बंद दरवाजे कीदस्तक कानों में सुनाई ,सिमट के रखा खुद को अपनो के संग […]
हिंदी दोहे मैट्रिक्स मीटर में रचित हिंदी कविता में स्व-निहित तुकबंदी का एक रूप है। कविता की यह शैली पहले अपभ्रंश में आम हो गई […]
वह नन्हीं सी कलीशाख़ पर बैठी।मुझे देख धीरे सेशर्माई, मुस्काई। कांटों की गोद मेंअस्तित्व अपना बचाती।एक दिन अचानकजोर से खिलखिलाई। फूल बनकर जग मेंअपनी सुगन्ध […]
शीर्षक: बचपन की याद नीम बरगद हो या पीपल,देते शीतल ठंडी छाव सदा।गांव का शांत वातावरण ही,हमको लगता हरदम प्यारा।चिंता फिकर नहीं है हमको,मिल जुल […]
प्रकृति नारी के रूपों सी नजर आती है जीवन के आरंभ से ही,नन्ही कली सी मुस्कुराती है।नन्ही सी प्यारी गुड़िया बन,अल्हड़, चंचल सी बहती जाती […]
शीर्षक: अपने अपने भगवान अंग्रेजी भाषा के शिक्षक दुबे जी का एक बड़ा सपना था कि रिटायरमेंट के बाद दोनों बहनों के परिवार के साथ […]
शीर्षक : कूकर की सीटी “दादी ! आज आप बहुत गुस्से में हैं ?” आठ साल का चिंटू दादी का मुँह देखते-देखते कह रहा था […]
शीर्षक: घर में ही जंगल पुश्तैनी दीवान ने अपने नज़दीकी सोफे से पूछा- “यह सब क्या हो रहा है? मैं तो बरसों से इसी जगह […]
शीर्षक-ढहती वर्जनाएं या बदलती रीत वो उदास थी मैने पूछा , “अरी! आज तू चहक नहीं रही तो ,मेरा भी मन नहीं लग रहा रसोई […]
मुनिया हैरान है ! मॉं और नानी गेहूँ छान रही हैं, साफ करने के बाद पिसवाएंगे। उन्होंने थैला भर दिया, नानाजी बिखरे कुछ दाने बीन […]
फूल खिलके बिखर जाते हैंबगिया को इस तरह सजाते हैं अपने अस्तित्व को मिटा करभी बगिया को महकाते हैं भंवरों की मनमानी सहकर भी काटे […]
पर्यावरण का विनाश पतझड़ बीता सावन आया मौसमने ली अंगड़ाई फ़िज़ा में रंग बिखरे अब पपीहे कीगूंज सुनाई पंछियों की धरा पर चहचहाहट यह गूंजकानों […]
कुछ दिनों से रोज एक अधेड़ व्यक्ति अपने साथ एक झोला लेकर गाँव में घूमता था। पुलिस की गाड़ी का हॉर्न सुनकर अच्छे अच्छे दुम […]
शीर्षक-दादी की कहावत दादी हमेशा कहती थी। नक्टो चपटो बेटो कचहरी जाइ न बठ्यो।श्माम सुन्दर बेटी चूलो जाइ ख फूक्यो। दादी को अपने लाड़ले पोते […]
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