
Articles by विनीता बर्वे


और शाम ढल दी
और शाम ढल दी….जी भर निहारा न था,और घड़ियां चल दी।नैनों से नैन भी न मिल पायें,और रश्मियाँ चल दी। किरणें ज्यों-ज्यों ठंडी हो चली,समय […]


हमारी धरोहर ‘ऋषि’
‘ऋषति-गच्छति संसारपारं इति ऋषि:।’ यह ऋषि की व्याख्या है।ऋषि की बुद्धि ईश समर्पित होने से ऋषि चिंतन में मानव को बदलने की शक्ति होती है। […]
