
क्या नारी, शक्ति का रूप है?
प्रिय पाठक वृंद,
सादर वंदे! उन सभी को जो शब्दबोध की अंतर्यात्रा में मेरे सहयोगी हैं, किसी न किसी रूप में।
हमारा भारत, उत्सवों और त्योहारों से सदा सराबोर रहता है।
फाल्गुन माह है और आप सभी को रंग बिरंगे, उत्साह से भरे पर्व होली की बधाइयाँ|
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तफला:।।
नारी को वेदों में पूजने योग्य माना है ; वर्तमान स्थिति में तो नारी केवल सम्मान ही चाहती है।
ईश्वर ने जब नर -नारी को इस नश्वर संसार में भेजा तब तो कोई भेदभाव नहीं था,
यह तो हमारी खोखली सामाजिक व्यवस्था है जिसमें नर – नारी के मध्य मतभेद जागा।
नर और नारी को शिव-शक्ति का रूप माना जाता है ,
जिसमें नर तो शिव है पर…… नारी?
क्या नारी शक्ति का रूप है?
नारी को स्वयं को ही अपने चरित्र का मूल्यांकन करना होगा।
उसे आगे बढ़कर एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें नर नारी एक दूसरे का सम्मान करें।
नारी पर नर की दृष्टि में बदलाव लाना होगा।
नारी किसी की मानसिकता तो नहीं बदल सकती, परन्तु स्वयं को इस तरह तैयार कर सकती है
कि वह नर के बराबर आने की होड़ ना करे, उसे अपना प्रतियोगी ना बनाकर सहयोगी बनाये।
दोनों के दायरे भिन्न है, उसे अपनी राह स्वयं बनाकर, निर्धारित उद्देश्य को पाना है।
नारी को अपनी सुरक्षा हेतु गहन मंथन आवश्यक है।
फिल्मों में, विज्ञापनों में और भी कई व्यवसायों में नारी के आकर्षक रूपों का कौन दोषी है ?
अर्थोपार्जन के और भी कईं साधन हैं ।
किसी भी कार्यक्षेत्र में सम्मान के साथ कार्य करो ; माँ ,बहन, पत्नी से भिन्न नारी के अस्तित्व को उन्नत करो।
शक्ति नाम को सार्थक करने के लिए उसे पापियों एवं कामोंधो को जवाब देना ही होगा, उसे इस सीमित दायरे से बाहर निकलकर स्वयं की सुरक्षा आना ही चाहिए।
नारी को इस तरह शिक्षा प्रदान करना चाहिए, जिसमें वह स्वयं का सम्मानीय अस्तित्व का सृजन करे और नारीत्व एवं मातृत्व की लाज रखे। नारी को नर नहीं नर जैसा भी नहीं ; उसे तो नारी ही बनना है ।
नर व नारी दोनों के की जिम्मेदारियाँ भिन्न है, कर्म क्षेत्र चाहे एक हो ।
नारी के गुणों का बखान नहीं करना यहाँ, उस जैसा कोई और नहीं तो नारी क्यों किसी के जैसा बनने की चाह में अपने कर्तव्यों को भूल रही है?
क्या सदैव इतिहास के पन्नों को पलट कर ही विदुषी नारीयों का नाम लेंगे, यह वर्तमान समय भी तो कभी इतिहास होगा..
तो आगे आओ ,सम्पूर्ण नारी जगत मिलकर एक ऐसा समाज बनाये, जिसमें ना तो नर परमेश्वर हो और नाही नारी देवी का रूप हो।
नर ,नर ही रहे और नारी, नारी हो। उनके अधिकारो में समन्वयता का दृष्टिकोण हो।
आभार, सम्पादिका डा. भावना बर्वे

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बहुत ही बढिय़ा